जयपुर। शादी से इतर जब दो वयस्क सहमति से संबंध बनाते हैं तो यह कोई कानूनी अपराध नहीं है। राजस्थान हाई कोर्ट ने एक पति की ओर से दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा कि आईपीसी की धारा 497 के तहत व्यभिचार अपवाद था, जिसे पहले ही रद्द किया जा चुका है।
जस्टिस बीरेंद्र कुमार ने कहा कि आईपीसी धारा 494 (द्विविवाह) के तहत मामला नहीं बनता है क्योंकि दोनों में से किसी ने पति या पत्नी के जीवनकाल में दूसरी शादी नहीं की है। जब तक विवाह साबित ना हो जाए, शादी जैसा रिश्ता, जैसे कि लिव-इन-रिलेशनशिप धारा 494 के तहत नहीं आता।
बेंच ने कहा, ‘संक्षिप्त पृष्ठभूमि है कि आवेदक ने यह आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराया कि उसकी पत्नी का आरोपियों ने अपहरण कर लिया। उसकी पत्नी कोर्ट में हलफनामे के साथ पेश हुई जहां उसने उसने कहा कि किसी ने उसका अपहरण नहीं किया, बल्कि अपनी मर्जी से आरोपी संजीव के साथ लिव इन रिलेशन में थी। इस अदालत ने पाया कि आईपीसी की धारा 366 के तहत अपराध नहीं हुआ और एफआईआर रद्द की जाती है।’
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि महिला ने स्वीकार किया है कि वह संजीव के साथ विवाहेतर, इसलिए आईपीसी की धारा 494 और 497 के तहत अपराध बनता है। वकील ने सामाजिक नैतिकता की रक्षा के लिए अदालत से अधिकार क्षेत्र के इस्तेमाल की अपील की। सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला देते हुए सिंगल बेंच ने कहा, ‘यह सच है कि हमारे समाज में मुख्यधारा का विचार यह है कि शारीरिक संबंध केवल शादीशुदा जोड़े के बीच हो, लेकिन जब शादी से इतर दो व्यस्क सहमति से संबंध बनाते हैं तो यह अपराध नहीं है।’
कोर्ट की ओर से कहा गया कि सहमति के साथ दो विपरीत लिंग के व्यस्कों के बीच संबंध (व्यभिचार के अपवाद के साथ) कोई अपराध नहीं है। हालांकि, इसे अनैतिक समझा जाता है। कोर्ट ने कहा, ‘एक व्यस्क महिला जिसके साथ चाहे शादी कर सकती है जिसके साथ चाहे रह सकती है।’ बेंच ने कहा, ‘आवदेक की पत्नी ने एक आरोपी व्यक्ति के साथ संयुक्त रूप से जवाब दाखिल करते हुए कहा है कि उसने अपनी मर्जी से घर छोड़ा और संजीव के साथ संबंध में है।’ याचिकाकर्ता ने एफआईआर रद्द करने के आदेश को वापस लेने की गुहार लगाई थी।