नई दिल्ली । सरकारी बैंकों के लिए 2.11 लाख करोड़ रुपये के वित्तीय पैकेज की घोषणा के बाद सरकार उनके विलय की प्रक्रिया को अब ज्यादा दिनों तक नहीं रोकना चाहती है।
ऐसे में सरकार ने सोमवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता में उस व्यवस्था के गठन की इजाजत दी है जिसे कुछ ही दिन पहले कैबिनेट से मंजूरी मिली थी।
सरकार ने इसे वैकल्पिक व्यवस्था (आल्टरनेट मैकेनिज्म) का नाम दिया था जो बैंकों में विलय से जुड़े मुद्दों पर फैसला करेगी। लेकिन यह एक तरह की समिति ही होगी जिसमें रेल व कोयला मंत्री पीयूष गोयल और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण को भी शामिल किया गया है।
सरकार का कहना है कि मंत्रियों की सदस्यता वाली यह समिति बैंक विलय का प्रस्ताव नहीं लाएगी बल्कि जो प्रस्ताव बैंकों की तरफ से आएंगे, उसे आगे बढ़ाने का काम करेगी। किस बैंक का विलय करना है, यह फैसला बैंकों के निदेशक बोर्ड के स्तर पर ही होगा।
उदाहरण के तौर पर अगर दो बैंक विलय का फैसला करते हैं तो उनके बोर्ड से प्रस्ताव पारित होगा और उसे इस समिति के पास भेजा जाएगा। इसकी मंजूरी के बाद आरबीआइ और सेबी वगैरह विलय प्रक्रिया को अंतिम रूप देंगे।
सूत्रों का कहना है कि तीन सरकारी बैंकों के बीच विलय की प्रक्रिया को लेकर बात काफी आगे बढ़ चुकी है। सरकार दिसंबर, 2017 तक कम से कम एक बड़े विलय प्रस्ताव को हरी झंडी दिखाने की मंशा रखती है।
यह इसलिए किया जाएगा ताकि बैंकों के लिए जारी होने वाले बांड के प्रति घरेलू और विदेशी निवेशकों को आकर्षित किया जा सके। विलय संबंधी एक बड़े प्रस्ताव के आगे बढ़ने से निवेशक समुदाय को एक बड़ा संदेश जाएगा कि सरकार सुधारों को लेकर काफी गंभीर है।