अवैध खनन के खिलाफ आंदोलित संत समाज को धमका रहे मंत्री विश्वेंद्र सिंह

0
112

-कृष्ण बलदेव हाडा-

कोटा। राजस्थान में भरतपुर संभाग के पवित्र माने जाने वाले ब्रज क्षेत्र में पिछले कुछ सालों से खनन माफियाओं के लगातार पहाड़ों में पत्थर-गिट्टी के लिए अवैध रूप से व्यापक पैमाने पर न केवल खनन करके इन पहाड़ियों का स्वरूप बिगाड़ जा रहा है, बल्कि कई पहाड़ियों को जमींनदोज करके उनका अस्तित्व तक खत्म कर दिया है।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार के एक प्रमुख मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विश्वेंद्र सिंह इस सारे मसले को पारिस्थितिकी और पर्यावरण संतुलन-संरक्षण की दृष्टि से महत्वपूर्ण मानने सहित हिंदू धर्म की भावनाओं के अनुसार इसकी संवेदनशीलता को समझने की जन भावना के प्रतिकूल अब खनन माफियाओं का न केवल गुपचुप रूप से पक्ष ले रहे हैं, बल्कि साधु-संतों को ही धमकाने पर आमादा हो गए हैं।

भरतपुर के पूर्व राज परिवार से जुड़े विश्वेंद्र सिंह खनन माफियाओं पर रोक की कोई ठोस पहल करने और ब्रज भूमि की पवित्रता को बनाये रखने एवं अवैध खनन से रोकने का कोई जतन करने के बजाय साधु-संतों को ही न केवल धमकाने से बाज आ रहे हैं बल्कि सारी सामाजिक शिष्टाचारिताओं को ताक में रखकर “बाबाओं को बदमाशी” नहीं करने की सीख देते नजर आ रहे हैं। जिसके कारण ब्रजभूमि क्षेत्र के साधु-संतों ही नहीं बल्कि हिंदू धर्मावलम्बियों में भी गहरा रोष व्याप्त है।

इस पूरे प्रकरण की खास बात यह है कि हिंदू धर्म और हिंदुओं की भावनाओं की आड़ में राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता इस सारे मसले पर मौन बने हुए हैं। अभी तक प्रदेश के किसी भी प्रभावशाली भारतीय जनता पार्टी के नेता ने विश्वेंद्र सिंह के संत समाज के प्रति की गई अशोभनीय टिप्पणियां के प्रति विरोध प्रकट करना तक जरूरी नहीं समझा है।

उल्लेखनीय है कि राजस्थान के भरतपुर संभाग के ब्रज भूमि क्षेत्र में गिट्टी-पत्थर के लिए पहाड़ियों मेंअवैध खनन रोकने के लिए साधु-संतों ने कई दिन तक अनवरत रूप से अनशन किया था। इसके बाद भी सरकार ने इस अवैध खनन को रोकने की दृष्टि से कोई भी सार्थक कदम नहीं उठाया तो इससे खफा होकर भरतपुर जिले के डीग क्षेत्र के एक महंत विजय दान ने अपने शरीर पर केरोसिन छिड़ककर आग लगा ली थी। जिससे वह गंभीर रूप से झुलस गए थे। बाद में उपचार के दौरान उन्होंने अस्पताल दम तोड़ दिया।

इस हादसे के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कुछ सावचेती दर्शाई थी और न केवल भरतपुर जिले बल्कि पूरे राज्य में जिला कलक्टर को अवैध खनन रोकने के निर्देश दिए थे। कुछ समय तक तो यह आदेश प्रभावी रूप से लागू किया, लेकिन बाद में धीरे-धीरे इसमें शिथिलता आती गई। नतीजा यह हुआ कि फिर से कई जगह अवैध रूप से खनन शुरू हो गया।

इसी के खिलाफ एक बार फिर साधु-संतों ने आवाज उठाई है और उन्होंने यहां चल रहे गिट्टी बनाने के क्रेशरों को बंद करने की मांग की है। लेकिन उनकी मांग को अनसुना कर दिया। इससे आक्रोशित होकर साधु-संत समाज ने एक दिसम्बर से आंदोलन करने की चेतावनी दी है।

अब बताया जाता है कि ब्रजभूमि क्षेत्र के पहाड़ आदि बद्री और कनकांचल क्षेत्र में इस अवैध खनन के खिलाफ साधु-संतों की आवाज उठाना और पत्थरों से गिट्टी बनाने के लिए बड़ी संख्या में चल रहे क्रेशरों को बंद कराने की मांग अशोक गहलोत सरकार के वरिष्ठ मंत्री विश्वेंद्र सिंह को रास नहीं आ रही है। उन्होंने इस मामले में साधु-संत समाज को “बदमाशी से बाज” आने की हिदायत दे डाली है।

इस बारे में विश्वेंद्र सिंह का यह तर्क है कि साधु-संतों के पिछले आंदोलन के बाद राज्य सरकार ने आदि बद्री और कनकांचल क्षेत्र में अवैध खनन बंद करने का जो वायदा किया था, उसे पूरा किया है।

राज्य सरकार ने अपने इस वायदे के अनुरूप सभी तरह के वैध-अवैध खानों को बंद करवा दिया है। उस समय भी सरकार ने या जिला प्रशासन ने किसी भी आंदोलनकारी से क्रेशर को बंद करने का कोई वायदा नहीं किया था, क्योंकि यह सभी क्रेशर कानूनी रूप से प्रशासनिक अनुमति लेकर के ही चल रहे हैं। इसलिए उन्हें बंद नहीं करवाया जा सकता है। लिहाजा इन क्रेशरों को बंद कराने की मांग गैर वाजिब है। इसलिये इस बात को लेकर आंदोलन करने के बजाय “बाबाओं को बदमाशी” करने से बाज आना चाहिए।

आखिर यह क्रेशर चल कैसे रहे हैं
विश्वेंद्र सिंह का यह कहना यदि सही है कि राज्य सरकार के आदेश से इस क्षेत्र की सभी वैध-अवैध पत्थर खाने बंद हो चुकी है तो एक सवाल यही है कि जब सभी वैध-अवैध पत्थर खाने बंद हो चुकी है और दूर-दूर तक कहीं खदान नहीं हो रहा है तो आखिर यह क्रेशर चल कैसे रहे हैं? इन क्रेशरों में पत्थरों से गिट्टी बनाने के लिए पत्थर आखिर आ कहां से रहा हैं?

इस एक यक्ष सवाल का जवाब कोई दे नहीं दे पा रहा है। क्योंकि यह तय है कि जब यहां पत्थर उपलब्ध होंगे, तभी क्रेशर चलेंगे और इस इलाके में बिना अवैध खनन के आखिर पत्थर आ कहां से रहे हैं ? क्योंकि यदि दूरदराज के किसी अन्य इलाके में चल रही वैध खान से पत्थर लाए जाते हैं तो उसे यहां लाकर गिट्टी बनाना किसी भी सूरत में लाभ का सौदा हो नहीं सकता तो ऎसे में क्रेशर मालिक क्रेशर चलायेगा क्यों ?