कश्मीर में आतंकवाद की नींव तो वर्ष 1984 में ही पड़ गई थी: कश्मीरी पंडित विजय माम

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नई दिल्ली। ‘क्या कहें? किससे गिला करें? क्यों करें?, अब तक मेरा बेटा विक्रम नहीं मिला। कुछ पता नहीं चला। उस रात घर से बाहर निकला, फिर वापस नहीं आया।’ यह कहते हुए 74 साल के बुजुर्ग कश्मीरी पंडित (Kashmiri Pandit News) विजय माम का दर्द आंसू बनकर छलक उठता है। वह 1989 में कश्मीर में सरकारी रेडियो में काम करते थे। बुजुर्ग दंपति आज भी अपने बेटे को याद करते हुए रोने लगते हैं। उन्होंने कहा, ‘आज वह होता, तो हमारा सहारा होता।

मेरा घर ब्लास्ट में जला दिया गया। हमने बेटा खो दिया। दो बेटियों को लेकर हम दिल्ली आ गए। अब दोनों की शादी हो गई है।’ द कश्मीर फाइल्स फिल्म की रिलीज के बाद देशभर में कश्मीरी पंडितों के दर्द को लोग महसूस कर रहे हैं। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे 90 के दशक में कश्मीरी पंडितों पर जुल्म ढाए गए और सरकार के स्तर पर बेहद गैरजिम्मेदाराना रवैया अपनाया गया था।

विजय माम कहते हैं कि 1984 में जम्मू एंड कश्मीर के गुलाम मोहम्मद शाह मुख्यमंत्री थे। इसी दौरान पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने इकबाल पार्क में जलसा किया था, जिसके बाद से कश्मीर के हालात खराब होते चले गए। तभी से आतंकियों ने विरोध जताना शुरू कर दिया था। जगह-जगह दुकानों के आगे काले रंग का बोर्ड लगा दिया गया। जिस पर भड़काऊ मैसेज लिखने लगे। साथ ही नमाज पढ़ने के लिए कहने लगे।

विजय कहते हैं कि ऐसा पहले कभी कश्मीर में नहीं देखा था। 1986 से ही कश्मीरी पंडितों पर हमला होना शुरू हो गया था। जिसके बाद 1986 में मार्च महीने में मोहम्मद शाह की सरकार गवर्नर जगमोहन ने गिरा दी। जिसके बाद कांग्रेस और फारूक अब्दुल्ला ने चुनाव लड़ा और सरकार बनाई।

फिर साल 1989 में दिवाली के अगली रात से ही कश्मीरी पंडितों को मारना और लूटना शुरू कर दिया। जिसमें हमने अपना बेटा खो दिया। गृहमंत्री अमित शाह ने आर्टिकल 370 और 35ए हटा दिया है। मगर इससे कश्मीरी पंडितों को फायदा नहीं हुआ। दिल्ली के अंदर सरकारी फ्लैट के अंदर रह रहे थे, उसे भी खाली करने का ऑर्डर दे दिया है। अभी तक हमें कुछ नहीं मिला है।

पूर्व सीआरपीएफ सिक्योरिटी इंचार्ज टी एन पंडिता ने बताया कि 1986 में ही इंटेलिजेंस रिपोर्ट में पता चल गया था कि कश्मीर के अंदर आतंकवादी हमला होने वाला है। इसके बाद भी कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। उन्होंने बताया कि उस समय मैं सुरक्षित था। लेकिन, मेरे माता-पिता और पत्नी मुश्किल में थे।

उनकी सुरक्षा के लिए कश्मीर छोड़ना पड़ा। जिसके बाद से मेरा परिवार कभी कश्मीर वापस नहीं गया। हमारी जमीन और घर पर कब्जा कर लिया गया। उन्होंने आगे बताया कि 2010 में कश्मीर गया था, अपने दोस्तों से मिला। लेकिन, सब बदल चुका है। उन्होंने कहा कि जब धारा 370 और 35 ए हटाई गई थी, तभी कश्मीरी पंडितों वहां पर दोबारा बसाना चाहिए था। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ।

पूर्व सरकारी कर्मचारी विजय कुमार बताते हैं, ‘आसान नहीं होता अपने बसे बसाए घर को जलते हुए देखना। उस समय भी सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली थी, इस समय में भी नहीं मिल रही है। ना ही हम वापस जाना चाहते हैं। क्योंकि वहां पर सिर्फ हमारी भयानक यादें ही बची हैं।’