नई दिल्ली। उद्योग संगठन पीएचडी चैंबर का मानना है कि भारत का निर्यात सरकार द्वारा उठाए गए दो महत्वपूर्ण कदमों (जीएसटी-नोटबंदी) की वजह से प्रभावित हुआ है। उनका कहना है कि देश का निर्यात पिछले वित्त वर्ष में 10 प्रतिशत की दर से बढ़कर 302.8 अरब डॉलर रहा, जबकि अनुमान था कि यह 325 अरब डॉलर (करीब 2,151 अरब रुपये) तक पहुंचेगा। इसी दौरान आयात 20 प्रतिशत की वृद्धि से 459.6 अरब डॉलर के बराबर रहा।
पीएचडी चैंबर मानता है कि माल एवं सेवा कर ( जीएसटी) बकायों की वापसी में देरी और नोटबंदी के प्रभाव जैसी रुकावटों की वजह अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे मुख्य बाजारों समेत वैश्विक मांग में सुधार के बाद भी 2017-18 में देश का निर्यात प्रभावित होकर उम्मीद से कम रहा। पीएचडी चैंबर ने यह जानकारी अपनी रिपोर्ट में दी है।
संगठन ने अपनी रिपोर्ट ‘कारोबार, उद्योग एवं निर्यातकों पर जीएसटी का असर’ में कहा कि निर्यात में मध्यम स्तर की 10 प्रतिशत की वृद्धि रही। पिछले वित्त वर्ष में व्यापार घाटा एक साल पहले के 108 अरब डॉलर से 45 प्रतिशत बढ़कर 157 अरब डॉलर पर पहुंच गया।
संगठन के अध्यक्ष अनिल खेतान ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि नोटबंदी के असर तथा जीएसटी की रुकावटों जैसे विभिन्न संरचनात्मक एवं घरेलू कारकों से निर्यात वृद्धि पर असर पड़ा है। खेतान ने कहा कि कई निर्यातक अभी भी एकीकृत जीएसटी के अपने बकाया रिफंड के लिए लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं। इससे उनको दैनिक खर्च की पूंजी का अभाव है और वे काम नहीं कर पा रहे हैं।
खेतान ने कहा, ‘हम एकीकृत जीसटी के बकाया वापसी की रुकावटों के कारण वैश्विक बाजार में उभरते अवसरों का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। ’ उन्होंने कहा कि 2017-18 को भारत के लिए निर्यात में अप्रत्याशित वृद्धि से चूकने के लिए याद किया जाएगा जबकि अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान जैसे मुख्य बाजारों के आयात में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है।
इस दौरान दक्षिण कोरिया का निर्यात 16 प्रतिशत, इंडोनेशिया का 17 प्रतिशत और मलेशिया का 15 प्रतिशत बढ़ा है।उन्होंने कहा, ‘यदि एकीकृत जीएसटी के बकाया के मुद्दे को सही तरीके से सुलझा लिया जाता है तो बढ़ती वैश्विक मांग एवं घरेलू बाजार में आपूर्ति में सुधार से 2018-19 के दौरान निर्यात 20 प्रतिशत बढ़कर 360 अरब डॉलर पर पहुंच जाएगा।’