चंबल सफारी में दिखा नेत्र चिकित्सा विज्ञान का जीवंत प्रतिबिंब

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देशभर से प्रशिक्षण के लिए आये चिकित्सक चंबल का प्राकृतिक सौंदर्य देख हुए अभिभूत

कोटा। सुवि आई हॉस्पिटल कोटा के डॉक्टरों और रेटिना फेलोज़ ने 19 दिसम्बर को ऑपरेशन थिएटर, स्लिट लैम्प और लेज़र की तकनीकी दुनिया से बाहर निकलकर प्रकृति की एक जीवंत प्रयोगशाला चंबल नदी को नज़दीक से देखने और महसूस करने का अवसर मिला।

जैसे ही नाव चंबल की शांत, स्वच्छ और पारदर्शी धारा पर आगे बढ़ी, ऐसा प्रतीत हुआ मानो किसी विशाल आँख की भीतरी संरचना में प्रवेश कर रहे हों। जल में उतरती सूर्य की किरणें ठीक उसी तरह चमक रही थीं, जैसे आँख के फंडस पर पड़ती रोशनी रेटिना की विभिन्न परतों को क्रमशः उजागर करती है।

नाव पर उपस्थित सुवि नेत्र चिकित्सालय कोटा के वरिष्ठ नेत्र सर्जन एवं निदेशक डॉ. सुरेश पाण्डेय, रेटिना विशेषज्ञ डॉ. निपुण बागरेचा, खुशबू जैन, नेत्र विशेषज्ञ डॉ. डिंपल भाकुनी (बरेली) तथा रेटिना फेलोज़ डॉ. ऐश्वर्या पार्थसारथी (मुम्बई), डॉ. प्रेरणा जगदाआने (पुणे) और डॉ. अपर्णा घोटके (नासिक) के लिए यह अनुभव केवल एक सफारी नहीं था, बल्कि प्रकृति के साथ एक गहरा संवाद था।

यह यात्रा यह समझाने वाली थी कि एक आँख के रेटिना विशेषज्ञ का कार्य भी चंबल सफारी जैसा ही है-धैर्य, सूक्ष्म निरीक्षण और गहन समझ की निरंतर माँग करता हुआ। जैसे सफारी में हर हलचल पर सजग रहना आवश्यक है, वैसे ही रेटिना की जाँच में हर माइक्रोन का अपना महत्व होता है।

देश के विभिन्न शहरों से कोटा पहुँचे सभी नेत्र चिकित्सकों ने, कोटा से लौटकर हाड़ौती में पर्यटन को बढ़ावा देने का संकल्प लिया और अपने परिजनों व परिचितों को चंबल सफारी सहित कोटा व हाड़ौती के अनेक सुंदर पर्यटन स्थलों की यात्रा के लिए प्रेरित करने का निर्णय किया।

नेत्र चिकित्सक डॉ. पाण्डेय ने बताया कि चंबल नदी की सबसे बड़ी विशेषता उसका स्वच्छ, अविचल और पारदर्शी प्रवाह है। यह आँख के एक स्वस्थ रेटिना की तरह है, जो बिना किसी अवरोध के प्रकाश को ग्रहण कर मस्तिष्क तक स्पष्ट और सटीक संकेत पहुँचाती है।

नाव आगे बढ़ती रही और जल की सतह के नीचे घड़ियाल व मगरमच्छ लगभग अदृश्य रूप से मौजूद थे—ठीक वैसे ही जैसे आँख के रेटिना की गहराइयों में कई रोग प्रारंभिक अवस्था में छिपे रहते हैं, जिन्हें केवल एक प्रशिक्षित और अनुभवी दृष्टि ही पहचान सकती है। चंबल में हो या रेटिना की जाँच में, एक क्षण की असावधानी गंभीर परिणाम ला सकती है।

नेत्र चिकित्सक डॉ. निपुण बागेरचा ने बताया कि आकाश में उड़ते पक्षी और दूर वृक्षों पर बैठे गिद्ध प्रकृति के सूक्ष्म संतुलन की याद दिला रहे थे। रेटिना भी आँख के भीतर ऐसा ही संतुलन केंद्र है, जहाँ प्रकाश, रक्त प्रवाह और तंत्रिकाएँ अत्यंत सूक्ष्म सामंजस्य में कार्य करती हैं।

नेत्र चिकित्सक डॉ. ऐश्वर्या पार्थसारथी के अनुसार जैसे चंबल का इकोसिस्टम अत्यंत नाज़ुक है और थोड़ा सा प्रदूषण उसकी जीवनदायिनी क्षमता को प्रभावित कर सकता है, वैसे ही रेटिना भी मधुमेह, उच्च रक्तचाप और उम्र से जुड़ी बीमारियों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होती है। डायबिटिक रेटिनोपैथी और मैक्युलर डिजनरेशन उसी तरह धीरे-धीरे दृष्टि को क्षीण करते हैं, जैसे नदी में बढ़ता प्रदूषण उसके अस्तित्व को प्रभावित करता है।

नेत्र चिकित्सक डॉ. डिंपल भाकुनी ने बताया कि जब सूर्य की किरणें जल पर पड़कर सुनहरी आभा बिखेर रही थीं, तो ऐसा लगा मानो आँख के फोविया पर पड़ती रोशनी दृष्टि की तीक्ष्णता को परिभाषित कर रही हो।

चंबल की शांति ने यह भी सिखाया कि चिकित्सा केवल तकनीक और मशीनों से नहीं, बल्कि संवेदनशीलता, धैर्य और प्रकृति से जुड़ाव से और अधिक प्रभावी बनती है। यह अनुभव सभी डॉक्टरों के लिए एक स्मरण था कि आँख केवल एक अंग नहीं, बल्कि एक संपूर्ण ब्रह्मांड है और रेटिना उसकी आत्मा।

चंबल सफारी समाप्त हुई, लेकिन उसके दृश्य और संदेश सभी के मन में गहराई से उतर गए। डॉ. प्रेरणा जगदाआने (पुणे) और डॉ. अपर्णा घोटके (नासिक) ने बताया कि जैसे एक सफल रेटिना उपचार के बाद रोगी की दुनिया पुनः रोशन हो उठती है, वैसे ही इस यात्रा ने सभी प्रतिभागियों के भीतर नई ऊर्जा, नई दृष्टि और प्रकृति के प्रति गहरा सम्मान जगा दिया। यह दिन विज्ञान और प्रकृति के उस सुंदर संगम का प्रतीक बन गया, जहाँ चंबल नदी और आँख के रेटिना एक-दूसरे की भाषा बोलते हुए प्रतीत हुए।