नई दिल्ली। रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया (आरबीआई) की रिपोर्ट बताती है कि मार्च, 2022 में सभी बैंकों का शुद्ध एनपीए (नान परफार्मिंग एसेट्स) घटकर 1.7 फीसद पर आ गया है, जो पिछले दो दशकों का सबसे न्यूनतम स्तर है। इसका फायदा उठाते हुए अब सरकार और आरबीआई के बीच एनपीए की प्रोविजनिंग के मौजूदा तौर-तरीके को बदलने पर चर्चा हुई है।
इसका मकसद ऐसी व्यवस्था तैयार करना है जिससे एनपीए घोषित होने के बाद बैंक उसके लिए प्रोविजनिंग नहीं करें। बल्कि भविष्य के एनपीए का अनुमान लगाते हुए पहले से ही प्रोविज¨नग की जाए। वर्ष 2008-09 में वैश्विक संकट के बाद कई देशों ने यह तरीका अपना रखा है और भारत भी उसी रास्ते पर बढ़ रहा है।
प्रोविजनिंग के नियम के तहत कर्ज की जितनी राशि डूबती है, उसका एक हिस्सा बैंकों को अपनी पूंजी से (शुद्ध मुनाफे) से अलग रखना होता है। आरबीआई के वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि यह बैंकों पर दोहरा वार करता है। एक तरफ उनकी राशि फंसी होती है, दूसरी तरफ मुनाफे का एक हिस्सा अलग करना होता है। यह नियम बैंकों को ज्यादा सतर्क रहने के उद्देश्य से उठाया गया था, ताकि वो कर्ज वसूली को लेकर कोताही नहीं करें। लेकिन, जब देश की इकोनमी की स्थिति ठीक नहीं होती है तो बैंकों को इससे काफी परेशानी होती है।
2013-14 से 2018-19 के दौरान एनपीए बढ़ने पर बैंकों को ज्यादा प्रोविजनिंग करनी पड़ी और इससे कई बैंकों को भारी हानि उठानी पड़ी। ऐसे में बैंकों के पास विस्तार या गुणवत्ता बढ़ाने के लिए अतिरिक्त राशि नहीं बच पाती। इससे बैंकों का वित्तीय प्रदर्शन प्रभावित हुआ है। आरबीआई एनपीए को लेकर गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के लिए नई व्यवस्था लागू कर चुका है। सूत्रों के मुताबिक, आरबीआइ पूरे बैंकिंग क्षेत्र में इस नए नियम को लागू करने के लिए एक सुझाव प्रपत्र जारी करेगी। सभी पक्षों से विमर्श के बाद नियमों को अंतिम रूप दिया जाएगा।