कोटा। रिद्धि सिद्धि नगर में आर्यिका विभाश्री माताजी ससंघ ने सोमवार को भक्तामर स्तोत्र की कक्षा में प्रवचन देते हुए पूज्य के स्वरूप और भक्ति के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जो प्रादुर्भूत दोषों से रहित है, वीतरागी, हितोपदेशी और सर्वज्ञ है, वही पूज्य है।
माताजी ने समझाया कि भगवान वीतरागी हैं, इसीलिए सैकड़ों इंद्र उन्हें नमस्कार करते हैं। वे सर्वज्ञ हैं, क्योंकि उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हो चुकी है। वे संसारी प्राणियों को हित का उपदेश देने वाले हितोपदेशी हैं। उन्होंने श्रद्धालुओं से आह्वान किया कि चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, प्रतिदिन जिनेंद्र भगवान की आराधना अवश्य करनी चाहिए।
गणिनी आर्यिका ने कहा कि भगवान की भक्ति ही संसार रूपी सागर से पार लगाने वाली है। छोटों और बड़ों दोनों को देखकर आगे बढ़ना चाहिए। भक्त का संकल्प इतना दृढ़ होना चाहिए कि वह सोचे कि मैं भगवान की ऐसी भक्ति करूंगा कि लोग देखने आएंगे।
जिनवाणी से ज्ञानावरणी कर्म का क्षय
माताजी ने बताया कि जिनवाणी के पठन से ज्ञानावरणी कर्म का क्षय होता है और बुद्धि में चातुर्य का विकास होता है। आत्मा में परिणामों की निर्मलता और विशुद्धि से ज्ञानावरणी कर्म का नाश होता है तथा बुद्धि का विकास होता है।
विनम्रता भक्ति का मूल
उन्होंने कहा कि भक्त को सदैव विनम्र रहना चाहिए, अहंकारी नहीं होना चाहिए। हे भगवन! आपके गुणों की छाया मुझे दिखाई देती है, इसलिए मैं आपकी भक्ति करने के लिए तत्पर हो रहा हूं, ऐसा भाव रखना चाहिए।

