-आशीष मेहता-
कोटा। हाड़ाैती का प्रसिद्ध कोटा जिले के सांगोद का पांच दिवसीय लोकोत्सव न्हाण घूघरी की रस्म के साथ बुधवार से शुरू हो गया। कस्बे में आज रात को न्हाण अखाड़ा चौबे पाड़ा व न्हाण अखाड़ा चौधरी पाड़ा के अलग-अलग घूघरी के जुलूस मुख्य मार्गों से नगाड़ों की थाप के बीच निकले।
इससे पहले देर शाम चौधरी पाडा (बाजार पक्ष) की ब्रह्माणी माता मंदिर के सामने घूघरी जुलूस की तैयारियां शुरू हो गई थी। यहां नगाड़ों की थाप के साथ ही न्हाण की रंगत जमने लगी थी। इसी तरह न्हाण अखाड़ा चौबे पाड़ा की घूघरी का जुलूस दाऊजी के मंदिर से रात काे नगाड़ों के थाप के बीच शुरू हुआ। दोनों जुलूस मैन बाजार में मिले। जहां दोनों अखाड़े के लोगों के बीच शब्द बाणों से जमकर कटाक्ष करते हुए मंचन हुआ।
घूघरी का जुलूस अपने अपने चिन्हित मार्गों से होते हुए वापस गंतव्य स्थल पर पहुंचा। इसके बाद दोनों अखाड़ों के लोगों को घूघरी प्रसाद का वितरण किया गया। घूघरी के बाद न्हाण के स्वांगों को मुहूर्त अनुसार चिल्लर राशि दी गई। देशभर से ट्रांसजेंडर किन्नर भी सांगोद पहुँच गए हैं।
घूघरी की रस्म के साथ ही 5 दिवसीय न्हाण लोकोत्सव का भी आगाज हो गया। करीब पांच सौ साल पुरानी रियासतकालीन लोक संस्कृति की यह परम्परा आज भी यहां निरन्तर जारी है। यह न्हाण अलग ही अपने रंगों की छटा बिखेरता है और करीब एक लाख से ज्यादा लोग इसके गवाह बनते हैं।
यह लोकोत्सव न्हाण अखाड़ा चौधरी पाडा की ओर से 13 मार्च को निकलने वाली बादशाह की सवारी के साथ सम्पन्न होगा। कोटा रियासत के जमाने से सांगोद में न्हाण लोकोत्सव का आयोजन होता आ रहा है। लोक संस्कृति का यह विशेष आयोजन आज भी उसी शान और शौकत से लगातार जारी है।
उल्लेखनीय है कि हर साल यहां न्हाण शुरू होते ही कस्बा दो दलों में विभाजित हो जाता है। लोकोत्सव के समय एक पक्ष न्हाण अखाड़ा चौधरी पाड़ा तो दूसरा न्हाण अखाड़ा चौबे पाड़ा बन जाता है। लोकोत्सव के प्रथम दो दिन चौधरी पाड़ा व अंतिम दो दिन चौबे पाड़ा पक्ष के आयोजन होते है।
पहले दिन दोपहर को बारह भाले एवं दूसरे दिन के तीसरे प्रहर बादशाह की सवारी निकलती है। वहीं दूसरे दिन सुबह भवानी की सवारी में निकलने वाली देवी- देवताओं की झांकियां देख लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। यही प्रक्रिया दूसरा पक्ष भी दोहराता है।
सांगोद के न्हाण लोकोत्सव के समय दोनों पक्षों के लोग अलग- अलग अंदाज में स्वांग रचाकर लोगों का मनोरंजन करते हैं। दोनों पक्षों में हर बार कुछ नया करने की होड़ सी लगी रहती है। बादशाह की सवारी भी पूरी शानो शौकत से निकलती है।
पहले पक्ष का बादशाह पालकी पर सवार होकर निकलता है तो दूसरे पक्ष के बादशाह की सवारी हाथी पर निकलती है। आगे स्वांग स्वरूप व घोड़ों पर सवार होकर छोटे- छोटे अमीर उमराव इसकी शोभा बढ़ाते हैं। न्हाण में देशभर के किन्नर भी शामिल होते हैं और अपने नृत्य से लोगों का मनोरंजन करते हैं।
लोकोत्सव काले जादू के लिए भी जाना जाता है, इसलिए सांगोद को जादुई नगरी भी कहा जाता है। दोनों पक्षों की बादशाह की सवारी के दौरान स्थानीय लोगों की ओर से अनेक प्रकार के जादुई करतब दिखाए जाते हैं। जिसे देख लोग दांतों तले अंगुलिया दबाने को मजबूर हो जाते हैं।
न्हाण के दौरान कलाकार जोश व उत्साह के साथ अपनी अपनी कलाओं की प्रस्तुतियां देते हैं। न्हाण लोकोत्सव की सबसे बड़ी विशेषता यह है की बिना प्रचार प्रसार किए ही लाखों लोग इस आयोजन का हिस्सा बनते हैं।
बिना आयोजन समिति के संपन्न होने वाले इस लोकोत्सव में आज तक कोई भी अप्रिय घटना नहीं घटी है। लोकोत्सव के समय यहां पुलिस प्रशासन भी शांति व्यवस्था बनाने में अपनी अहम भूमिका निभाता है। सांगोद का न्हाण लोकोत्सव आज भी लोक संस्कृति की छटा देशभर में बिखेर रहा है।