अरावली बचाओ सम्मेलन में खनन रोकने और पर्यावरण संरक्षण पर उठाई आवाज़

0
5

अरावली विरासत जन अभियान में चार राज्यों के प्रतिनिधि हुए शामिल

जयपुर/कोटा। राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर, जयपुर “न्याय निर्माण मेला” में अरावली पर्वतमाला के चारों राज्यों और देशभर के अन्य क्षेत्रों के लोगों ने “अरावली बचाओ सम्मेलन” में भाग लिया। सबसे पहले अरावली आंदोलन को राष्ट्रीय अभियान बनाने पर सभी साथियों ने सहमति दी।

अभियान का नाम “अरावली विरासत जन अभियान” रखने का सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास हुआ। इसी अभियान का संचालन चारों राज्यों के कई साथी मिलकर करेंगे। अरावली के स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में शिक्षकों और विद्यार्थियों के साथ अरावली तथा वहां के लोगों के स्वास्थ्य संबंधी संवाद किए जाएंगे। अरावली को खनन मुक्त रखने की योजना बनाकर काम करेंगे।

अरावली की हरियाली ही चारों राज्यों की खाद्य सुरक्षा और जलवायु सुरक्षा में मदद करती है। यह बात सम्मेलन में सभी ने स्वीकार की और इसे सभी के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक बताया। हम सब का स्वास्थ्य अरावली के स्वास्थ्य से जुड़ा है। जब अरावली सूखी और नग्न थी, तब अरावली की नदियां सूख गई थीं।

खनन रुकने से अरवरी, रूपारेल, भागाणी, जहाजवाली और महेश्वरा जैसी नदियाँ पुनर्जीवित होकर दोबारा बहने लगी है। खनन होने से इन नदियों के फिर से सूखने का भय है। हम इन नदियों को शुद्ध और स्वच्छ बनाए रखना चाहते हैं, इसलिए अरावली में खनन रोकवाना होगा।

अरावली के केंद्र जयपुर में स्थित पद्मश्री लक्ष्मण सिंह ने उक्त बातों का समर्थन करते हुए प्रस्ताव रखा कि अरावली हमारी जीवनरेखा है और इसे बचाना हमारे लिए जरूरी है। यदि हमारी सरकार और न्यायपालिका हमारी आवाज़ नहीं सुन रही हैं, तो अरावली के लिए पर्यावरण-यज्ञ करना होगा। मैं इस काम के लिए संपूर्ण समर्पित भाव से “अरावली विरासत जन अभियान” के साथ पुनः जुड़ गया हूँ।

अहमदाबाद (गुजरात) से आई कुनिका नामक बहन ने कहा कि हमारे गुजरात में खनन के साथ-साथ पर्यटन बढ़ाने के नाम पर बहुत बड़ा विनाश हुआ है। हम शामलाजी से लेकर हिम्मतनगर तक खनन के दुष्प्रभाव को समझाने के लिए विद्यालयों, कॉलेजों और महाविद्यालयों में अभियान चलाएंगे।

स्मृति केडिया (उदयपुर) ने कहा कि अब उदयपुर क्षेत्र में अरावली की छोटी-छोटी पहाड़ियों को 6 करोड़ में खरीदकर वहां होटल बनाकर और खनन बढ़ाकर बड़ा नुकसान किया जा रहा है। कविता श्रीवास्तव ने कहा कि अरावली के बच्चे बड़े जन-संगठन और पर्वतों को बचाने में मदद कर सकते हैं। यहाँ के किसान संगठन खनन विरोधी हैं। वे भी इस अभियान के साथ है।

छत्तीसगढ़ के गौतम उपाध्याय ने कहा कि अरावली के संबंध में उच्चतम न्यायालय के निर्णय से हम सभी चिंतित हैं। हमारे उड़ीसा, छत्तीसगढ़, झारखंड और महाराष्ट्र के सभी साथी चिंतित हैं कि जो निर्णय आया है वह खान माफिया के पक्ष में है और न्यायालय ने भी उन्हीं के पक्ष में निर्णय दिया है, जिससे हमारी पारिस्थितिकी और नदियां नष्ट हो जाएंगी तथा हमारी स्वास्थ्य-सुरक्षा दूभर हो जाएगी।

एडवोकेट अमन ने कहा कि पर्वतों को बचाना बहुत जरूरी है। यदि इसे नहीं बचाया गया तो अरावली के आसपास का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाएगा। यही समय है कि हम संविधान की रोशनी में पुनः उच्चतम न्यायालय जाएं।

अरावली बचाओ अभियान की सक्रिय पदाधिकारी नीलम अहलूवालिया ने कहा कि यह लड़ाई कानूनी है और हम सब मिलकर कानूनी लड़ाई लड़ेंगे। अब यह केवल ई-मेल, व्हाट्सएप आदि डिजिटल माध्यमों तक सीमित नहीं रह सकती। अब हम पूरी अरावली में जन-अभियान चलाएंगे।

गाँव से लेकर जिला, राज्य और देश स्तर पर अरावली के लिए चेतना-तंत्र खड़ा करेंगे। उच्चतम न्यायालय में भी जाएंगे और गाँवों में भी जागरूकता फैलाएंगे। अरावली को बचाना हम सबका कर्तव्य है।

हाडोती संभाग से चम्बल संसद के संयोजक बृजेश विजयवर्गीय ने कहा आश्चर्य है कि अरावली पर्वत हाडोती के बूंदी तक आ रहा है, लेकिन माननीय न्यायालय ने बूंदी में अरावली की मोजूदगी को ही नकारा है। जबकि यहां विंध्याचल और अरावली का संगम है।

जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा, उच्चतम न्यायालय ने अरावली का खनन बंद कराया था; अब अचानक ऐसा क्या हुआ कि वही उच्चतम न्यायालय अरावली पर्वतमाला में खनन की अनुमति देने जैसा निर्णय दे रहा है? इस पर उच्चतम न्यायालय को पुनः विचार करना चाहिए, ताकि भारत की विरासत बचे और भारत समृद्ध बने।” यहाँ की प्रकृति और संस्कृति के योग से हम विश्वगुरु बने।