लखनऊ। जीएसटी की आड़ में फर्जी बिल बनाकर 60 करोड़ रुपये से ज्यादा का चूना लगाने वाले गिरोह का डायरेक्टरेट जनरल ऑफ जीएसटी इंटेलीजेंस (डीजीजीआई) की टीम ने गुरुवार को पर्दाफाश करने का दावा किया है। डीजीजीआई की टीम के अनुसार, कानपुर के व्यापारियों- मनोज कुमार जैन और चन्द्र प्रकाश तायल के अलग-अलग ठिकानों पर छापेमारी के दौरान यह टैक्स चोरी सामने आई है। इससे पहले गुजरात और राजस्थान में ऐसे मामले सामने आ चुके हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में इस तरह का पहला मामला पकड़ा गया है।
जीएसटी इंटेलिजेंस के अधिकारियों के मुताबिक, जीएसटी लागू होने के एक साल के भीतर दोनों व्यापारियों ने अलग-अलग फर्मों के नाम से 400 करोड़ रुपये के बोगस इनवॉयस प्रदेश के कई जिलों के कारोबारियों के लिए काटे। इस बोगस इनवॉयस के जरिए उन कारोबारियों और कम्पनियों ने अपनी लागत बढ़ी हुई दिखाकर गलत तरीके से इनपुट टैक्स क्रेडिट लिया। साथ ही मुनाफा कम दिखाकर इनकम टैक्स की चोरी भी की। फर्जी इनवॉयस के एवज में मनोज और चन्द्र प्रकाश उन कम्पनियों से इनवॉयस की कुल रकम का एक से दो प्रतिशत कमिशन लेते थे।
बोगस कम्पनियों के नाम से काटे बिल
अधिकारियों के अनुसार, अलग-अलग क्षेत्रों के कारोबारियों को बोगस इनवॉयस देने के लिए मनोज और चन्द्र प्रकाश ने कई बोगस कम्पनियां बना रखीं थीं। इन कागजी कम्पनियों के जरिए सीमेन्ट, बिटुमिन, प्लास्टिक दाना, मेटल, प्लास्टिक एवं धातु की चादरों की आपूर्ति दिखाकर इनवॉयस इशू होता था।
सच यह था कि जिस सामान की खरीद इनवॉयस में दिखाई जाती थी, वह सामान कोई कम्पनी खरीदती ही नहीं थीं। सिर्फ इनपुट कॉस्ट बढ़ाने के लिए फर्जी इनवॉयस लगा दिया जाता था। दोनों कारोबारी 6 कम्पनियों के नाम पर फर्जी इनवॉयस इशू करते थे। इनके नाम बिहार जी डिवलपर्स, गोपाल जी इंपैक्स, राधे-राधे डेवलपर्स, श्री राधे ट्रेडर्स, ज्ञान ट्रेडर्स और एस के उद्योग बताए गए हैं।
फर्जी ट्रांसपोर्ट सिस्टम भी बनाया
फर्जी कम्पनियां और इनवॉयस बनाने के अलावा दोनों व्यापारियों ने पकड़े जाने से बचने के लिए एक फर्जी ट्रांसपोर्ट सिस्टम भी बनाया। इसके तहत ट्रांसपोर्ट मालिकों की मिलीभगत से माल ढुलाई के लिए फर्जी ई-वे बिल बनाए गए। फर्जीवाड़े का भंडाफोड़ न हो, इसके लिए ट्रांसपोर्ट मालिकों को आरटीजीएस के जरिए वास्तविकता में पेमेंट भी किया जाता था।
ट्रांसपोर्ट मालिक इसमें से अपना कमिशन लेकर बाकी पैसा मनोज और चंद्र प्रकाश को कैश में वापस कर देते थे। फर्जीवाड़ा करने वाले दोनों व्यापारियों को गुरुवार दोपहर कैसरबाग स्थित इकोनॉमिक ऑफेंस कोर्ट में पेश किया गया। यहां से दोनों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
एक कमरे से कट गए करोड़ों के बिल
इस फर्जीवाड़े का भंडाफोड़ करने के लिए डायरेक्टरेट जनरल ऑफ जीएसटी इंटेलिजेंस के अडिशनल डायरेक्टर जनरल राजेन्द्र सिंह की अगुआई में टीम डेढ़ महीने से लगी हुई थी। कम्पनियों को जिस पते पर रजिस्टर किया गया था, वहां कुछ भी न होने की वजह से फर्जी बिल कहां से काटे जाते हैं यह पता करने में काफी समय लगा।
मनोज कुमार जैन और चन्द्र प्रकाश तायल ने एक कमरे में ही बैठकर 6 कंपनियों के नाम से करोड़ों रुपये के फर्जी बिल जारी कर दिए। इस काम को अंजाम देने वाली टीम में डीजीजीआई के डिप्टी डायरेक्टर कमलेश कुमार, एसआईओ पीके त्रिपाठी, बृजेश त्रिपाठी, आईओ उपदेश सिंह समेत लखनऊ यूनिट के 20 से ज्यादा अधिकारी लगे हुए थे।