किसानों की नब्ज टटोल पाने में विफल हो रही है भाजपा

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पूर्व राजस्थान नहर परियोजना के मसले पर मौन बने हुए हैं प्रदेश से निर्वाचित सभी 25 सांसद

-कृष्ण बलदेव हाडा-
प्रदेश भारतीय जनता पार्टी इस मायने में बहुत ही सौभाग्यशाली है कि पिछले आम चुनाव में राजस्थान की सभी 25 लोकसभा सीटों पर पार्टी के सांसद चुने गए थे और इन सभी 25 निर्वाचित सांसदों में से तीन केंद्र सरकार में मंत्री भी हैं, लेकिन इसके बावजूद इसे वैचारिक सोच की कमी और संगठनात्मक शक्ति का अभाव ही माना जाएगा कि प्रदेश से लोकसभा में इतना शक्ति बल होने के बावजूद यह सब मिलकर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से राज्य से जुड़ी उन योजनाओं को मनवाने में विफल साबित हो रहे हैं जो केंद्र सरकार के पास लंबे समय से लंबित है।

इन लंबित योजनाओं में सबसे महत्वपूर्ण और महत्वाकांक्षी परियोजना पूर्व राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) है जिसके एक बार बनकर तैयार हो जाने के बाद राजस्थान के 13 जिलों जिनमें हाडोती संभाग के कोटा, बूंदी,बारां, झालावाड़ जिलों सहित सवाई माधोपुर, अजमेर, टोंक, जयपुर, करौली, अलवर, भरतपुर, दौसा और धौलपुर शामिल है, के लाखों किसान लाभान्वित होंगे क्योंकि इससे न केवल इन 13 जिलों की हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचित कर वहां की कृषि उत्पादन क्षमता बढ़ाने और किसानों की दृष्टि से उनकी आर्थिक समृद्धि को मजबूत करने के लिए पानी मिलेगा बल्कि इन सभी जिलों में भूमिगत जल स्तर के काफी गहरे चले जाने के कारण प्यासे रह रहे हजारों-लाखों लोगों के कंठ की प्यास बुझ सकेगी।

पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) के संदर्भ में प्रदेश भाजपा से जुड़ा सर्वाधिक दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि राजस्थान नहर के बाद प्रदेश की दृष्टि से बनी इस सबसे बड़ी और महत्वाकाक्षी सिंचाई परियोजना उस समय बनी जब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और खुद तत्कालीन मुख्यमन्त्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने न केवल पहल करते हुए बल्कि रुचि दिखाते हुए इसका समूचा खाका तैयार कर योजना मंजूर की।

यही नहीं, इस परियोजना का महत्व समझते हुए पिछले विधानसभा चुनाव के समय स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अजमेर और जयपुर के ग्रामीण क्षेत्रों की बड़ी जनसभाओं में यह घोषणा की थी कि केंद्र सरकार इस परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देगी, लेकिन हो इसके उलट रहा है।

विधानसभा चुनाव में प्रदेश में भाजपा हारी और श्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी लेकिन सीएम बनने के बावजूद राजनीतिक पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर श्री गहलोत ने श्रीमती वसुंधरा राजे के कार्यकाल में बनाई गई इस परियोजना का महत्व स्वीकार करते हुए इसे पूरा करवाने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की।

इसके बाद आम चुनाव में प्रदेश की जनता ने विधानसभा चुनाव के उलट लोकसभा में भाजपा को अपार जन समर्थन दिया और सभी 25 सीटों से भाजपा के सांसद चुने गए लेकिन इस प्रचंड जीत के बावजूद प्रधानमंत्री प्रदेश के किसानों से किया गया ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा दिलवाने का वादा भूल गए जो उन्होनें 25 सांसदों को जिताने वाले राजस्थान के 13 जिलों के किसानों से किया था।

वैसे यह मान भी लें कि प्रधानमंत्री के पास किसी राज्य विशेष की जिम्मेदारी नहीं होती, पूरा देश संभालना होता है तो ऐसे में चुनावी वादे भूल सकते हैं तो इन हालात में यहां से निर्वाचित हुये 25 सांसदों की यह जिम्मेदारी बनती थी कि वह प्रधानमंत्री को चुनाव के समय किया यह वायदा याद दिलाते क्योंकि इससे लाभान्वित होने वाले किसानों के मतों से ही तो वे लोकसभा में पहुंचे है।

इसके अतिरिक्त एक अन्य दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि केंद्रीय जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत राजस्थान से ही हैं, जिनके मंत्रालय के पास ऐसी परियोजनाओं से जुड़े मसले होते हैं लेकिन वह अपनी दूसरी “राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं” के चलते इस पूरे मामले में प्रधानमंत्री से किसी भी तरह का दबाव पूर्ण रुख अपनाकर उनकी नाराजगी मोल नहीं लेना चाहते हैं।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अगुवाई में राज्य सरकार इस परियोजना को शुरू करवाने का हर संभव प्रयास कर रही है लेकिन यह अकेले राज्य सरकार के बस में नहीं है क्योंकि यह इतनी बड़ी परियोजना है कि अभी इसका काम शुरू किए जाने के बाद भी इसे पूरा होते-होते वर्ष 2051 आ जाएगा क्योंकि इससे 13 जिलों में पीने की पानी की उपलब्धता के अलावा विभिन्न बड़ी-मध्यम परियोजनाओं के माध्यम से 2.8 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई के लिए पानी पहुंचाने का प्रावधान है और इस परियोजना की अभी तक कुल लागत 40 हजार करोड़ रुपए की आंकी गई है जबकि इसके मुकाबले राज्य की हैसियत का अनुमान इससे ही लगाया जा सकता है कि इस परियोजना के लिए राज्य सरकार के बजट में 13 हजार करोड़ रुपए का ही प्रावधान किया जाना संभव हो पाया है।

इस परियोजना को तेजी से अमलीजामा पहनाया जाना उसी स्थिति में संभव है,जब केंद्र इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित करें। ऐसी स्थिति बनने पर परियोजना का 90 प्रतिशत खर्च केंद्र वहन करेगा तो शेष 10 फ़ीसदी राशि का राज्य सरकार के लिए वहन करना सरल हो जाएगा।

प्रदेश में जिस तरह से ईआरसीपी को राजनीतिक मुद्दा बनाया जा रहा है, इसको देखते हुए इस चुनावी साल में विधानसभा चुनाव से पहले ग्रामीण जन-जन के बीच उनसे जुड़ा अहम मसला होगा और बहुत संभव है कि इन 13 जिलों में किसान उसी राजनीति दल-विचारधारा के साथ खड़े नजर आए जो इस परियोजना के जरिए उनके हक की बात कर रहा है। ऐसे में अभी तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस ही इस परियोजना के पक्ष में मुखर हैं, जबकि भारतीय जनता पार्टी के सभी 25 सांसद मौन है।

जरूरत इस बात की है कि भाजपा राजनीतिक पूर्वाग्रहों को त्यागकर ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा दिलवाने के लिए प्रधानमंत्री पर दबाव बनाये क्योंकि मंजिल अभी भी बहुत दूर है। परियोजना का काम यदि आज शुरू हुआ तो पूरा होने में भी कम से कम वर्ष 2051 तक करीब ढाई दशक लग जाएंगे।

नोट- यह आर्टिकल LENDEN NEWS की सम्पादकीय टीम ने एडिट नहीं किया है। इसको हूबहू प्रकाशित किया है। यह लेखक के अपने विचार हैं।