धन, पद और प्रतिष्ठा क्षणिक हैं, आत्मकल्याण ही शाश्वत सत्य: विनयश्री माताजी

0
8

कोटा। श्री चन्द्रप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर, रिद्धि–सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में आर्यिका विनयश्री माताजी ने कहा कि जीवन में धन, पद और प्रतिष्ठा क्षणिक हैं, किंतु आत्मकल्याण ही शाश्वत सत्य है। उन्होंने कहा कि मनुष्य को अपने भविष्य और वर्तमान के बीच संतुलन बनाना चाहिए, क्योंकि यह जीवन प्रभु का दिया हुआ एक सीमित अवसर है।

माताजी ने कहा कि इस संसार में हम सभी प्रभु के अतिथि हैं। जिस प्रकार कोई अतिथि कुछ समय के लिए किसी के घर आता है, उसी प्रकार हमें भी नियत समय के बाद इस लोक से जाना पड़ता है। इसलिए राज, राग और अहंकार का त्याग कर जीवन को साधना के मार्ग पर लगाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि धन संग्रह करना अनुचित नहीं, किंतु उसका सदुपयोग अत्यंत आवश्यक है। जो धन समाज, धर्म और सेवा में नहीं लगता, वह व्यक्ति के पतन का कारण बनता है। उन्होंने सभी को प्रेरित किया कि मनुष्य को अपने कर्म, भक्ति और दान से जीवन को सार्थक बनाना चाहिए, क्योंकि मरण निश्चित है। परंतु पुण्य का संचय ही अमरता का मार्ग है। प्रवचन के अंत में आर्यिका विनयश्री माताजी ने सभी से संयम, श्रद्धा और साधना के माध्यम से जीवन को अर्थपूर्ण बनाने का संदेश दिया।