नई दिल्ली। केंद्र सरकार की ओर से जल्द ही सभी नौकरीपेशा लोगों के लिए एक बड़ी खुशखबरी का ऐलान किया जा सकता है। इसके तहत सरकार ग्रेच्युटी के नियमों में कुछ बदलाव (New rules of Gratuity) करने की योजना बना रही है। सरकार ग्रेच्युटी की 5 साल की समय सीमा की बाध्यता को खत्म करते हुए इसे 1 साल से 3 साल के बीच (Who get Gratuity under new rule) में करने पर विचार कर रही है।
यानी अगर ऐसा हो जाता है तो पहले की तुलना में अधिक लोग ग्रेच्युटी के पैसे निकाल सकेंगे। दरअसल, अभी तक के ग्रेच्युटी के नियमों के मुताबिक कम से कम 5 साल तक एक ही कंपनी में काम करना जरूरी होता है, तभी ग्रेच्युटी मिलती है और बहुत से लोग 5 साल से पहले ही नौकरी बदल लेते हैं, जिससे उनकी ग्रेच्युटी का फायदा कंपनी को होता है। अभी दो बातों पर विचार हो रहा है। एक तो ये कि कुछ सेक्टर के लिए आनुपातिक बदलाव किया जाए और दूसरा ये कि सभी के लिए ग्रेच्युटी की सीमा कम कर दी जाए और दूसरे विकल्प को अधिक समर्थन मिल रहा है।
क्यों किया जा रहा है बदलाव?
ग्रेच्युटी में बदलाव करने की दो अहम वजहें हैं। पहली तो है जॉब सिक्योरिटी, जो अब पहले की तुलना में काफी घट गई है। कोरोना वायरस महामारी ने इसमें बहुत बड़ा रोल अदा किया है। दूसरी वजह है कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले कर्मचारियों की बढ़ती संख्या। इसकी वजह से कर्मचारियों को ग्रेच्युटी का फायदा बहुत ही कम मिल पा रहा है और सारा फायदा कंपनियां उठा रही हैं।
ग्रेच्युटी का हक मारने वाली कंपनियों पर लगाम
देखा गया है कि कई कंपनियां कॉस्ट कटिंग के नाम पर कर्मचारियों का ग्रेच्युटी का हक मार रही हैं। वह कर्मचारी की नौकरी का 5 साल का समय पूरा होने से पहले ही उन्हें निकाल देती हैं। कॉस्ट कटिंग के नाम पर कर्मचारियों को निकाल कर सरकार उनकी ग्रेच्युटी बचा लेती है। यानी जो फायदा कर्मचारियों को मिलना चाहिए था, उसे गलत तरीके से कंपनियां अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रही हैं।
पीएफ जैसी हो सकती है व्यवस्था
सरकार की कोशिश है कि ग्रेच्युटी को भी पीएफ (Provident Fund) जैसा बना दिया जाए। यानी नौकरी बदलने पर शख्स ग्रेच्युटी को दूसरी कंपनी के खाते में ट्रांसफर कर सकेगा, जैसा कि अभी पीएफ के साथ होता है। देखा जाए तो सरकार पूरे ग्रेच्युटी के स्ट्रक्चर में ही बदलाव करने की सोच रही है। ये देखना दिलचस्प रहेगा कि सरकार ग्रेच्युटी में कितना बदलाव करती है, जिससे कर्मचारियों को फायदा हो।
पीएफ की तरह हर महीने कॉन्ट्रिब्यूशन!
जिस तरह पीएफ में हर महीने एक निश्चित राशि का योगदान दिया जाता है, ठीक वैसी ही व्यवस्था ग्रेच्युटी में भी करने की योजना बनाई जा रही है। ग्रेच्युटी को वैध रूप से सीटीसी यानी कॉस्ट टू कंपनी का हिस्सा बनाना का प्रस्ताव भी रखा गया है। इस प्रस्ताव पर श्रम मंत्रालय ने काम भी शुरू कर दिया है और एंप्लॉयर एसोसिएशन के साथ बैठक में इस बात की चर्चा भी हो चुकी है।
क्या होती है ग्रेच्युटी?
एक ही कंपनी में लगातार कई सालों तक काम करने वाले शख्स को सैलरी, पेंशन और प्रोविडेंट फंड के अलावा ग्रेच्युटी भी दी जाती है। ग्रेच्युटी का छोटा हिस्सा कर्मचारी की सैलरी से कटता है, लेकिन बड़ा हिस्सा कंपनी की तरफ से दिया जाता है। मौजूदा व्यवस्था के मुताबिक अगर कोई शख्स एक कंपनी में कम से कम 5 साल तक काम करता है तो वह ग्रेच्युटी का हकदार होता है। बता दें कि नियम के मुताबिक जिस भी कंपनी में 10 या उससे अधिक कर्मचारी होते हैं, वह कंपनी अपने कर्मचारियों को ग्रेच्युटी देती है।
ग्रेच्युटी का कैल्कुलेशन समझना है जरूरी
मान लीजिए कि किसी कर्मचारी ने 30 साल एक ही कंपनी में काम किया और आखिरी सैलरी के हिसाब से बेसिक सैलरी और महंगाई भत्ता मिलकर 50 हजार रुपए होता है। इस 50 हजार को 26 से भाग दे दिया जाएगा। बता दें कि ग्रेच्युटी के कैल्कुलेशन में महीने में 30 नहीं, बल्कि 26 दिन माने जाते हैं, क्योंकि बाकी के 4 दिन छुट्टी के माने जाते हैं। ऐसे में 1923.07 रुपये की रकम निकलेगी।
अब कर्मचारी के कुल सालों को 15 से गुणा कर देंगे, क्योंकि एक साल में 15 दिन के आधार पर ही ग्रेच्युटी का कैल्कुलेशन किया जाता है। इस तरह रिजल्ट आएगा (15*30) 450, जिसे 1923.07 से गुणा कर देंगे। इस तरह कुल रकम 8,65,381 रुपये आ जाएगी, जिसका कर्मचारी को भुगतान कर दिया जाएगा।