नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या फैसले को लेकर दाखिल सभी 18 पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया है। शीर्ष अदालत ने 9 नवंबर को अयोध्या विवाद पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन रामलला को देने का आदेश दिया था। इस आदेश के खिलाफ कई मुस्लिम पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन डाली थी। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने फैसले के खिलाफ याचिका दायर की, वहीं निर्मोही अखाड़े ने भी अपनी कुछ मांगों को लेकर रिव्यू पिटिशन दाखिल की थी।
चीफ जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस अब्दुल नजीर और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने एकमत से रिव्यू पिटिशन को खारिज कर दिया। बता दें कि अयोध्या के ऐतिहासिक फैसले वाली पीठ में जस्टिस बोबड़े, डी वाई चंद्रचूड़ और अब्दुल नजीर भी शामिल रहे हैं।
निर्मोही अखाड़े की मांग
निर्मोही अखाड़ा ने अयोध्या फैसले के खिलाफ नहीं बल्कि शैबियत राइट्स, कब्जे और लिमिटेशन के फैसले पर याचिका दाखिल की थी। निर्मोही अखाड़े ने अपनी याचिका में शीर्ष अदालत से राम मंदिर के ट्रस्ट में भूमिका तय करने की भी मांग की थी।
मुस्लिम पक्ष की याचिका
मुस्लिम पक्ष की तरफ से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईपीएलबी) और जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी याचिका डाली थी। अदालत के इस फैसले पर पुनर्विचार के लिए पहली याचिका 2 दिसंबर को मूल वादकारियों में शामिल एम सिद्दीक के वारिस और यूपी जमीयत उलमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना सैयद अशहद रशीदी ने दायर की थी। इस याचिका में 14 बिंदुओं पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया गया था। उनकी अपील थी कि बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण का निर्देश देकर ही इस प्रकरण में ‘पूरा न्याय’ हो सकता है। इस फैसले पर पुनर्विचार के लिए अब मौलाना मुफ्ती हसबुल्ला, मोहम्मद उमर, मौलाना महफूजुर रहमान और मिसबाहुद्दीन ने दायर की हैं। ये सभी पहले मुकदमे में पक्षकार थे।
अयोध्या पर यह था फैसला
उल्लेखनीय है कि नवंबर में तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मत फैसले में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि की डिक्री ‘राम लला विराजमान’ के पक्ष में की थी। इसके साथ ही राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ हो गया। उन्होंने इसके साथ ही अयोध्या में ही मस्जिद निर्माण के लिये उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ भूमि आवंटित करने का निर्देश केंद्र सरकार को दिया था।