कोटा। स्मार्टफोन का चलन बढ़ने के साथ ही इनसे निकलने वाले रेडिशन हमें कई तरह के नुकसान पहुंचा रहे हैं। जिसका पता तुरंत नहीं लगता। जब पता लगता है तब तक हम हम अपना और अपनी बहुमूल्य आँखों का काफी नुकसान कर चुके होते हैं। स्मार्टफोन हम बड़े प्यार से छोटे बच्चों को भी थमा देते हैं, यह जानते हुए भी कि इनसे निकलने वाले रेडिशन कितने खतरनाक हैं।
अपनी यही आदत बच्चों में ‘नोमोफोबिया’(Smartphone Addiction) जैसा रोग भी दे रही हैं। बाद में इसी आदत के चलते बच्चों और बड़ों में ‘डिजिटल विजन सिंड्रोम'(Digital vision syndrome) जैसी बीमारी हो रही है। आइए नेत्र रोग विशेषज्ञ एवं फेको सर्जन डॉ. सुरेश पांडेय से जाने ‘नोमोफोबिया’ के बारे में –
‘नोमोफोबिया’ का अर्थ है ‘नो मोबाइल फोबिया’। यह एक तरह का फोबिया यानी डर है। जिसमें व्यक्ति को फोन पास नहीं होने का डर लगता है। उसे हमेशा इस बात का डर सताता रहता है कि कहीं उसका फ़ोन खो न जाये। ‘नोमोफोबिया’ से ग्रसित व्यक्ति फ़ोन पास नहीं होने पर बैचेन हो उठता है। नोमोफोबिया से ग्रसित व्यक्ति को ‘नोमोफोब’ कहा जाता है।
‘नोमोफोबिया’ के लक्षण
‘नोमोफोबिया. के लक्षणों को लेकर सभी मनोवैज्ञानिक एकमत नहीं हैं। कई मनोवैज्ञानिक इसे नशे की लत से भी ज्यादा खतरनाक मानते हैं। वहीं कुछ मनोवैज्ञानिक इसे एक भय और मनोविकार का नाम देते हैं, लेकिन फिर भी कुछ सामान्य लक्षण जिनकी मदद से आप ‘नोमोफोबिया’ से ग्रसित व्यक्ति की पहचान कर सकते हैं। (वीडियो देखें)
‘नोमोफोबिया’ के सामान्य लक्षण
- लगातार 5 मिनट भी फोन चेक किए बिना नहीं रह पाना।
- फ़ोन की बैटरी खत्म होने पर घबराहट महसूस करना।
- फोन के बगैर रहने पर बैचेन हो उठना।
- रिंग टोन बजते ही नोटिफिकेशन चेक करने के लिए अधीर हो उठना।
- इंटरनेट /नेटवर्क कवरेज न होने पर बैचेन हो उठना।
- फ़ोन के खोने अथवा घर पर छूट जाने का डर।
- चिंता थकान और स्वभाव में चिड़चिड़ापन।