आत्मशांति के लिए मन के विकार दूर होना जरूरी: आर्यिका सौम्यनन्दिनी

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कोटा। महावीर नगर विस्तार योजना स्थित दिगंबर जैन मंदिर में चल रहे आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी संघ के पावन वर्षायोग के अवसर पर शनिवार को माताजी ने प्रवचन करते हुए कहा कि देश की शांति के लिए सीमाएं सुरक्षित रहना जरूरी हैं। देश की समृद्धि के लिए देश के नागरिक सुरक्षित रहना जरूरी हैं। देश से आतंकवाद और नक्सलवाद दूर होना आवश्यक है। वैसे ही आत्मशांति के लिए मन के विकारों का दूर होना जरूरी है।

आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी ने कहा कि हम जब आत्मा के शांत स्वभाव की मर्यादा को छोड़ देते हैं तो विकार बढने लगते हैं। यह स्थिति अशांति को जन्म देती है। पर इससे विपरीत जब इसका भेद ज्ञात हो जाता है और हम आत्मा के सहज रुप में रहते हैं तो जीवन में हर समय शांति और आनंद ही होता है।

उन्होंने कहा कि आत्म स्वरूप सबसे सुंदर है। मेरा अपना ज्ञान, आनंद स्वरूप आत्मा ही देखने लायक है और करने लायक सर्वोत्तम कार्य आत्म बोध है, आत्मदृष्टि है। मर्यादा और सीमाएं सुरक्षित रखना जरूरी है, नहीं तो विकारों की घुसपैठ हो जाती है। अपने ज्ञान का अभिमान करने वालों को आगाह करते हुए माताजी ने कहा कि ज्ञानियों ज्ञान की शक्ति का दुरूपयोग मत कीजिए।

इधर-उधर झांकने की जरुरत नहीं, अपने आत्म स्वरूप में झांकते रहिए। माताजी ने कहा कि शांत मन से चिंतन करते हुए उत्पन्न भावों से तटस्थ पदार्थों के भोग की अभिलाषा को समाप्त किया जा सकता है। उन्होंने मोह-माया से पृथक होकर त्याग की भावना से जीने का आह्वान करते हुए कहा कि गुरु के वचनों से संस्कारित होकर जीवन में प्रगति का पद प्राप्त किया जा सकता है। गुरु वंदना अंजलि लुंग्या ने की।