नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने दबाव वाली बिजली परिसंपत्तियों को बड़ी राहत दी है। न्यायालय ने बैंकों को निर्देश दिया है कि वे इनमें से किसी भी मामले को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के 12 फरवरी के परिपत्र के तहत दिवालिया कार्यवाही के लिए न भेजें। शीर्ष न्यायालय ने साथ ही इस परिपत्र को चुनौती देने वाले सभी मामले अपने पास मंगा लिए है।
मामले की अगली सुनवाई 14 नवंबर को होगी। दवाब वाली 34 बिजली परिसंपत्तियों के अलावा जहाजरानी और चीनी कंपनियों ने भी आरबीआई के परिपत्र से राहत की मांग की थी। अगर न्यायालय ने रोक नहीं लगाई होती तो ये सभी मामले राष्ट्रीय कंपनी कानून पंचाट (एनसीएलटी) में चले जाते।
आरबीआई के परिपत्र के तहत ऋणदाताओं को चूककर्ता परिसंपत्तियों के मामले एक मार्च, 2018 से 180 दिन की अवधि समाप्त होने के बाद 15 दिन के भीतर दिवालिया कार्यवाही के लिए भेजने थे। 15 दिन की अवधि आज खत्म हो गई। नौ बिजली परिसंपत्तियां का मामला एनसीएलटी के बाद समाधान के करीब था। न्यायालय के फैसले से इन कंपनियों को सबसे ज्यादा फायदा होगा।
भारतीय स्टेट बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि बिजली कंपनियों की ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता के बाहर समाधान के प्रयास जारी रहेंगे। एस्सार पावर, आरकेएम पावर, आईएलऐंडएफएस, जीएमआर एनर्जी, रत्तन इंडिया और केएसके महानदी ने आरबीआई के परिपत्र के खिलाफ विभिन्न अदालतों में मामले दायर किए हैं।
इससे पहले विभिन्न उद्योग संगठनों द्वारा दायर याचिकाओं पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 27 अगस्त के अपने आदेश में कोई राहत नहीं दी थी।एपीपी के महानिदेशक एके खुराना ने कहा, ‘उच्चतम न्यायालय के आदेश ने दबाव वाली बिजली परिसंपत्तियों को बड़ी राहत दी है। इससे बैंक रों को करीब 13 गीगावॉट क्षमता की परियोजनाओं के लिए समाधान योजना को अंतिम रूप देने के लिए समय मिल जाएगा।
सरकार दवाब के कारणों को दूर करने के लिए कुछ उपाय करना चाहती है जिसके बारे में उच्चाधिकार प्राप्त समिति अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।’ सरकार ने बिजली क्षेत्र के लिए समाधान योजना तैयार करने के वास्ते कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में इस समिति का गठन किया था।
समिति में कोयला, बिजली, वित्त और रेलवे मंत्रालय के प्रतिनिधि सदस्य हैं और इसके 29 सितंबर को अपनी रिपोर्ट सौंपने की संभावना है। बैंक ऐसी कंपनियों के मामले सुलझा सकते हैं जिन्हें अभी तक एनसीएलटी को नहीं भेजा गया है। हालांकि दो दर्जन से भी अधिक परियोजनाओं का भविष्य अब भी अनिश्चित है। साथ ही एनसीएलटी में भेजे जा चुके मामलों में यथास्थिति बरकरार रहेगी।
इंडसलॉ में पार्टनर सौरभ कुमार ने कहा कि अदालत के आदेश से उन सभी कंपनियों को अपने ऋणदाताओं के साथ मिलकर समाधान निकालने का समय मिल गया है जो आरबीआई की 12 फरवरी के परिपत्र से प्रभावित थीं। उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि ज्यादा कंपनियों के लिए समाधान आसान नहीं होगा।
अगर कोई समाधान नहीं होता है, तो फिर देरी से आईबीसी के तहत समाधान निकालने की संभावना क्षीण हो जाएगी। उच्चतम न्यायालय संभवत: आरबीआई के परिपत्र को अवैध घोषित नहीं करेगा लेकिन वह कंपनियों को और समय दे सकता है।’