रिपोर्ट में सामने आया यह सच
नई दिल्ली। नेस्ले गरीब देशों में बेचे जाने वाले शिशु दूध में चीनी की अधिक मात्रा मिलता है, लेकिन यूरोप या ब्रिटेन के अपने मुख्य बाजारों में नहीं। नेस्ले के दो सबसे ज्यादा बिकने वाले बेबी फूड ब्रांड्स में चीनी की अधिक मात्रा पाई गई है। जबकि यही उत्पाद ब्रिटेन, जर्मनी, स्विट्जरलैंड और अन्य विकसित देशों में बगैर चीनी के बेचे जा रहे हैं। पब्लिक आई की एक रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है।
दुनिया की सबसे बड़ी उपभोक्ता उत्पाद कंपनी नेस्ले के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि वह दूध और बच्चों से जुड़े उत्पादों में मोटापे और गंभीर बीमारियों को रोकने के लिए जारी दिशानिर्देशों के विपरीत चीनी और शहद जैसी चीजें मिला रही है। नेस्ले की ओर से किया गया उल्लंघन कंपनी के एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों के उत्पादों में देखा गया है।
रिपोर्ट के अनुसार भारत में बिकने वाले नेस्ले के बच्चों से जुड़े उत्पादों की हर सर्विंग में करीब 3 ग्राम चीनी पाई गई। चीनी की इस मात्रा के बारे में पैकेट पर कंपनी की ओर से कोई जानकारी नहीं दी गई है। नेस्ले की ओर से गरीब और विकासशील देशों में बेचे जा रहे उत्पादों में चीनी मिलाने का खुलासा तब हुआ जब स्विस जांच संगठन पब्लिक आई और आईबीएफएएन (इंटरनेशनल बेबी फूड एक्शन नेटवर्क) ने एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में बेचे जाने वाले कंपनी के बेबी फूड उत्पादों के नमूने बेल्जियम की प्रयोगशाला में परीक्षण के लिए भेजे।
पब्लिक आई की जांच रिपोर्ट से बुधवार को सार्वजनिक किया गया में कहा गया है कि जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन में नेस्ले द्वारा बेचे गए छह महीने के बच्चों के लिए सेरेलैक गेहूं आधारित अनाज में कोई अतिरिक्त चीनी नहीं मिली, जबकि उसी उत्पाद में इथियोपिया में प्रति सर्विंग 5 ग्राम और थाईलैंड में 6 ग्राम से अधिक चीनी मिली।
जांच में सामने आए निष्कर्षों के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैज्ञानिक निगेल रोलिंस ने पब्लिक आई और आईबीएफएएन को बताया, “यह नेस्ले की ओर से अपनाया गया एक दोहरा मानक है जिसे उचित नहीं ठहराया जा सकता है।” उन्होंने कहा कि तथ्य बताते हैं कि नेस्ले स्विट्जरलैंड में इन उत्पादों में चीनी नहीं मिलाता है, लेकिन कम संसाधन वाले देशों में वह ऐसा करके खुश है। कंपनी का यह कदम सार्वजनिक स्वास्थ्य और नैतिक दृष्टिकोण दोनों पर सवाल खड़े करता है।