नई दिल्ली। निर्यात मांगआगे भी मजबूत बने रहने की संभावना और मॉनसूनी बारिश पर ‘अल नीनो’ (El Nino) के प्रभाव पड़ने की आशंका को लेकर खरीफ बोआई को लेकर बढ़ रही चिंता के बीच चावल की घरेलू कीमतों में तेजी आगे भी जारी रह सकती है।
जानकारों के अनुसार घरेलू कीमतों में आगे नरमी की संभावना नहीं है क्योंकि वैश्विक स्तर (global level) पर सप्लाई डेफिसिट (supply deficit) की स्थिति बनी हुई है। साथ ही भारतीय चावल ग्लोबल मार्केट में फिलहाल सबसे ज्यादा कॉम्पिटेटिव है। जिस वजह से एक्सपोर्ट डिमांड आगे भी मजबूत बनी रह सकती है। इसके अतिरिक्त मॉनसून के ऊपर अल नीनो के मंडराते खतरे के बीच खरीफ धान के उत्पादन पर भी असर पड़ने की आशंका बढ़ गई है।
कमोडिटी रिसर्च हेड इंद्रजीत पॉल के मुताबिक फिलहाल चावल की 1,121 वैरायटी 8,300 से 8,400 रुपये प्रति क्विंटल के रेंज में कारोबार कर रही है। जो जून 2023 तक बढ़कर 9,000 से 9,500 रुपये प्रति क्विंटल तक जा सकती है।
उपभोक्ता मंत्रालय के प्राइस मॉनिटरिंग डिवीजन (Price Monitoring Division) के आंकड़े बताते हैं कि पिछले एक साल में दिल्ली में चावल की खुदरा कीमतों में 22 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। चावल की कीमत शुक्रवार (5 मई, 2023) को 39 रुपये प्रति किलोग्राम दर्ज की गई। जबकि ठीक एक साल पहले यह 32 रुपये प्रति किलोग्राम थी। थोक कीमतों में भी समान अवधि के दौरान 18 फीसदी की तेजी आई और यह 2,550 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 3,000 रुपये प्रति क्विंटल जा पहुंची।
वहीं, इंटरनैशनल ग्रेन काउंसिल (IGC) की मंथली ग्रेन रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर पिछले एक साल में चावल की कीमतों (Rice sub-index) में तकरीबन 18 फीसदी का इजाफा हुआ है। जबकि मार्च के मुकाबले अप्रैल में कीमतों में 3 फीसदी की तेजी आई।
फिच सॉल्यूशंस (Fitch Solutions) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2023 में वैश्विक स्तर पर चावल की सप्लाई डिमांड के मुकाबले 8.7 मिलियन टन (87 लाख टन) कम रह सकती है। पिछले 20 साल में सप्लाई में यह सबसे बड़ी गिरावट है। इससे पहले 2003-04 में सप्लाई डेफिसिट (supply deficit) यानी डिमांड-सप्लाई मिसमैच बढ़कर 18.6 मिलियन टन (1.86 करोड़ टन) तक चली गई थी। इस रिपोर्ट की मानें तो 2024 यानी अगले साल से पहले चावल की कीमतों में नरमी आने की कोई संभावना नहीं है।
मौजूदा सप्लाई डेफिसिट के लिए उत्पादन में कमी के साथ साथ मांग में बढ़ोतरी भी जिम्मेदार हैं। प्रतिकूल मौसम की वजह से कई प्रमुख उत्पादक देशों में उत्पादन में आई कमी की वजह से जहां ग्लोबल सप्लाई में कटौती आई, वहीं रूस-यूक्रेन संघर्ष की वजह से वैश्विक स्तर पर गेहूं की आपूर्ति में आए भारी व्यवधान की वजह से वैश्विक स्तर पर चावल की मांग बढी।
हालांकि गेहूं की वैश्विक आपूर्ति में हाल के कुछ महीनों में काफी सुधार हुआ है। परिणामस्वरूप कीमतें भी पिछले साल के इसी समय के मुकाबले 30 फीसदी से ज्यादा घटी है। गेहूं की अंतरराष्ट्रीय कीमत फिलहाल दो साल के निचले स्तर पर है। आने वाले समय में भी गेहूं की कीमतों पर दबाव बना रह सकता है। गेहूं की आपूर्ति बढ़ने और कीमतों में नरमी से चावल की मांग पर थोड़ा असर पड़ सकता है लेकिन कीमतों पर दबाव बने ऐसी स्थिति नहीं है। क्योंकि फिलहाल सप्लाई डेफिसिट रिकॉर्ड स्तर पर है।
यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर (USDA) की तरफ से पिछले महीने जारी डिमांड-सप्लाई रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022-23 के लिए चावल का कुल ग्लोबल क्लोजिंग स्टॉक घटकर 171.4 मिलियन टन (17.14 करोड़ टन) रह सकता है। जो पिछले साल के मुकाबले 6 फीसदी कम है। 2017-18 के बाद यह सबसे कम क्लोजिंग स्टॉक है।
ग्लोबल ट्रेड की बात करें तो भारत से चावल का निर्यात फिलहाल 442 डॉलर प्रति टन के भाव पर हो रहा है। जो पिछले साल के एक्सपोर्ट प्राइस के मुकाबले 27 फीसदी ज्यादा है। जबकि थाईलैंड और वियतनाम में चावल का एक्सपोर्ट प्राइस क्रमश: 11 और 16 फीसदी बढ़ा है।
चावल के औसत एक्सपोर्ट प्राइस में भी समान अवधि के दौरान 15 फीसदी की तेजी आई है। लेकिन कम तेजी के बावजूद थाईलैंड और वियतनाम के चावल का एक्सपोर्ट प्राइस अभी भी भारत के मुकाबले ज्यादा है।