-कृष्ण बलदेव हाडा-
अंतत जैसा कि सोचा जा रहा था, उसी के अनुकूल अब तक राजस्थान विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष रहे भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ विधायक राजेंद्र सिंह राठौड़ नेता प्रतिपक्ष चुन लिये गये। लेकिन भाजपा के निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने अप्रत्याशित रूप से उप नेता प्रतिपक्ष पद को स्वीकार कर लिया। वरिष्ठ नेता होने के कारण नैसर्गिक दावेदार होते हुए भी कैलाश मेघवाल नेता प्रतिपक्ष के पद से वंचित रह गए।
हाल के गुलाबचंद कटारिया के असम के राज्यपाल बनाए जाने के बाद विचारित किया जा रहा था, प्रदेश में भाजपा के वरिष्ठ विधायकों में शामिल राजेंद्र सिंह राठौड़ को नेता प्रतिपक्ष चुन लिया गया। हालांकि जानकार सूत्रों का कहना है कि नेता प्रतिपक्ष पद के लिए कुछ अन्य नामों पर भी विचार किया गया था जिनमें वरिष्ठ विधायक। कालीचरण सराफ, वासुदेव देवनानी और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का भी नाम शामिल है।
वसुंधरा राजे पहले से ही इस पद की जिम्मेदारी निभाने से इंकार कर चुकी है, तो पार्टी ने वर्तमान के उप नेता प्रतिपक्ष राठौड़ को ही नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी। इस पद पर नैसर्गिक दावेदार रहे वरिष्ठ भाजपा विधायक और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष रह चुके कैलाश मेघवाल को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया।
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता कैलाश मेघवाल इस पद के लिए सबसे अधिक मजबूत दावेदारी में शामिल थे, क्योंकि वे चार बार के निर्वाचित विधायक, भाजपा की सरकारों में मंत्री और बाद में राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष भी रहे हैं। लेकिन उनके नेता प्रतिपक्ष बनने के रास्ते में उनका खुद का 17 जुलाई 2020 को दिया गया वह बयान ही सबसे अधिक आड़े आ गया, जो उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनकी सरकार में उप मुख्यमंत्री रहे पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के बीच छिड़े सत्ता संघर्ष के समय दिया था।
जिसमें उन्होंने इस विवाद को लेकर न केवल पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व और केंद्र सरकार में जल एवं संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की अप्रत्यक्ष रूप से भूमिका पर सवाल खड़े करते हुए भारतीय जनता पार्टी को ही कटघरे में खड़ा कर दिया था।
इस बयान में कैलाश मेघवाल ने इस बात पर गहरी नाराजगी जाहिर की थी और कहा था कि ऐसा देखने को मिल रहा है कि सत्ताधारी दल के लोग विपक्षी पार्टियों से मिलकर सरकार को गिराने का षडयंत्र कर रहे हैं। लेकिन इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। पक्ष और विपक्ष के बीच गरमा-गरम बहस होती रही है। चाहे वह मोहनलाल सुखाड़िया और भैरो सिंह शेखावत के बीच हो या अशोक गहलोत और श्रीमती राजे के।
अब ऐसा हो रहा है कि सत्ताधारी दल के लोग विपक्षी पार्टियों से मिलकर सरकार गिराने का षडयंत्र कर रहे हैं। हालांकि कैलाश मेघवाल ने भंवर लाल शर्मा का भी उदाहरण दिया जो कांग्रेस के विधायक रहे, लेकिन किसी जमाने में भैरो सिंह शेखावत की सरकार में मंत्री रहते हुए उन्होंने तत्कालीन भाजपा सरकार की सरकार को गिराने की कोशिश की थी और इसके लिए पैसे भी बांटे गए थे।
जिसके बारे में कैलाश मेघवाल ने कहा है कि खुद विधायकों ने ही भंवर लाल शर्मा के बांटे पैसे भैरों सिंह शेखावत को सौंपे थे। यह पूरी घटना और भंवर लाल शर्मा के कारनामें उस समय मीडिया में काफी चर्चा में थे। कैलाश मेघवाल ने इस बात पर कड़ी आपत्ति की थी और अपने इस बयान में कहा था है कि राजस्थान की महान परंपरा रही है और इन नेताओं की किसी भी सरकार गिराने के काम में सहयोग नहीं करना चाहिए। चाहे वे कोई भी राजनीतिक पार्टी की हो।