कोढ़ में खाज: पहले सरसों को समर्थन मूल्य नहीं, अब पाम ऑयल का आयात

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-कृष्ण बलदेव हाडा-
सरकार की ओर से समर्थन मूल्य पर सरसों की खरीद की घोषणा नहीं किए जाने से पहले ही कोटा संभाग सहित राजस्थान के सरसों उत्पादक किसान गंभीर संकट से जूझ रहे थे, लेकिन अब केंद्र सरकार के पाम ऑयल का बड़े पैमाने पर आयात करने की घोषणा किए जाने से सरसों उत्पादक किसानों का यह संकट अब और बढ़ने वाला है।

केन्द्र सरकार के समर्थन मूल्य पर सरसों की खरीद शुरू करने की घोषणा नही किये जाने से निश्चित रूप से मंडियों में या खुले बाजार में किसानों को उनकी उपज सरसों का पर्याप्त भाव मिलना मुश्किल है। ऐसे में पहले ही से मौसमी मार को झेल चुके कोटा, संभाग सहित राजस्थान के सरसों उत्पादक किसानों के लिए संकट और बढ़ेगा। सरसों के पर्याप्त भाव नहीं मिलने से उन्हें गंभीर आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा।

राजस्थान के कोटा संभाग के चारों जिलों कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़ सहित भरतपुर संभाग की तो रबी के कृषि सत्र में सरसों ही यहां के लाखों किसानों की मुख्य कृषि उपज है। जिस पर ही उनके आने वाले वित्तीय वर्ष में परिवार के लालन-पालन सहित शादी-ब्याह,तीज-त्योहार जैसे सामाजिक धार्मिक उत्सव पर होने वाले खर्च का भार उठाने का दायित्व है। ऐसे में यदि किसानों को सरसों की उपज का पर्याप्त भाव नहीं मिला तो उनके सामने गंभीर आर्थिक संकट उत्पन्न होना तय है।

वर्तमान में कोटा संभाग में सरसों की नई फसल बिक्री के लिए संभाग के लगभग सभी कृषि उपज मंडियों में आ गई है, लेकिन संकट यह है कि किसानों को अव्वल तो उनकी उपज के पर्याप्त दाम नहीं मिल रहे हैं और जो दाम मिल रहे हैं, उनमें भी मांग की तुलना में आवक अधिक होने के कारण और आढ़तियों-व्यापारियों की तयशुदा रणनीति के चलते भाव में लगातार गिरावट आ रही है। पिछले 24 घंटों में ही कोटा की मंडी में सरसों के भाव प्रति क्विंटल 100 रुपए गिरे हैं जो सीधा-सीधा किसानों के आर्थिक हितों पर चोट है।

वर्तमान में कोटा की भामाशाह कृषि उपज मंडी समेत संभाग की अन्य मंडियों में आमतौर पर प्रति क्विंटल सरसों के भाव करीब 4500 रुपये प्रति क्विंटल है, जो पिछले साल के खुले बाजार में बिक रही सरसों की तुलना में बहुत कम है। क्योंकि पिछले साल रबी कृषि सत्र की फसलों के खुले बाजार में बिक्री के लिए आते समय किसानों ने अपनी सरसों की उपज को छह रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से मिले थे।

उस समय यह भाव सरकार की ओर से तय किए गए सरकारी समर्थन खरीद मूल्य की तुलना में अपेक्षाकृत कहीं अधिक होने के कारण किसानों को सरकारी कांटों पर अपनी उपज बेचने के एवज में अपनाई जाने वाली लम्बी सरकारी प्रक्रिया से मुक्ति मिल गई थी और उन्हें खुले बाजार में ही सरसों के अच्छे भाव मिल रहे थे। इस साल अभी तक स्थिति उलट है। पिछले साल के औसतन 6000 रुपए प्रति क्विंटल के भाव की तुलना में किसानों को वर्तमान में करीब 4500 रुपए प्रति क्विंटल मिल रहे हैं, जो अपेक्षाकृत कम ही नहीं, बहुत ज्यादा कम है।

इससे तो किसानों के लिए आमदनी तो क्या, अपने खर्चे भी जैसे-तैसे कर निकाल पाना मुश्किल हो जाएगा। इस पर अब केंद्र सरकार ने पाम ऑयल की आयात पर लगी रोक को हटा कर बड़े पैमाने पर पाम ऑयल की खरीद की छूट देने का फैसला किया है।

यदि रिकॉर्ड स्तर पर देश में पाम ऑयल का आयात होगा तो इससे निश्चित रूप से स्थानीय मिलों में सरसों की पिराई पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। इसका अंततः खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ेगा। क्योंकि आढ़तिये-व्यापारी मांग नहीं होने का बहाना बनाकर किसानों से औने-पौने दामों में उनकी उपज को खरीदेंगे और अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए किसान उसको भारी घाटा होने के बावजूद बेचने को मजबूर होंगे। क्योंकि इसके अलावा उनके पास विकल्प नहीं है।

सरकार ने अभी तक समर्थन मूल्य घोषित नही किया है इसलिए सरसों की खरीद के लिए सरकारी कांटे स्थापित नही किए गए हैं। इसमें लगातार देरी जितनी होगी, किसानों के लिए नुकसान उतना ही बढ़ने वाला है।

पूर्व कैबिनेट मंत्री रहे और वर्तमान में कोटा जिले के सांगोद विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक भरत सिंह कुंदनपुर ने आज केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को एक पत्र भेजकर कहा है कि पहले ही मौसम की मार के कारण सरसों की फसल को हुए नुकसान के बावजूद किसानों को अब न तो खुले बाजार में सरसों के पर्याप्त भाव मिल पा रहे हैं और न ही सरकार की ओर से समर्थन मूल्य पर इसकी खरीद की घोषणा की जा रही है।

इसके विपरीत किसानों की कमर तोड़ने के लिए केंद्र सरकार की भाजपानीत सरकार पाम ऑयल के आयात पर लगी पाबंदी को हटा कर बड़े उद्योगपतियों-व्यापारियों को लाभ पहुचाने के लिये विदेशों से बड़े पैमाने पर आयात की छूट प्रदान करने जा रही है, जिससे किसानों के लिए गंभीर संकट की स्थिति उत्पन्न होना तय है।

श्री भरत सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री एक ओर जहां ‘मेक इन इंडिया’ का नारा देकर स्वदेशी उत्पाद को बढ़ावा देने का छलावा कर रहे हैं, दूसरी ओर इसके विपरीत किसानों के आर्थिक हितों पर चोट पहुंचा कर बड़े उद्योगपतियों-व्यापारियों को लाभ पहुचाने की बदनीयत से पर्याप्त मात्रा में देश में सरसों जैसी तिलहनी फसलों की उपलब्धता होने के बावजूद पॉम ऑयल के आयात से पाबंदी हटाकर पॉम ऑयल की खरीद को प्रोत्साहित करने की नीति अपना रहे हैं।

श्री भरत सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार ने 91.07 लाख टन पॉम तेल के आयात करने का फैसला किया है और यह फैसला सीधे-सीधे किसान विरोधी है। उन्होंने इस बात पर खेद प्रकट किया राजस्थान से केंद्र में संसद के लिए निर्वाचित जनप्रतिनिधि मोदी सरकार के पॉम ऑयल आयात के विशुद्ध किसान विरोधी फैसले पर न केवल चुप्पी साधे हुए बैठे हैं, बल्कि किसानों को उनकी उपज का वाजिब मूल्य दिलवाने के लिए केंद्र से सरकारी समर्थन मूल्य पर खरीद शुरू करने की मांग नहीं कर रहे। ऐसे जनप्रतिनिधियों का किसानों को राजनीतिक-सामाजिक बहिष्कार करना चाहिए।