राजस्थान में जीत के दावे से पहले भाजपा को अपना घर संभालने की दरकार

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-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा। Power struggle in Rajasthan BJP: भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा का राजस्थान के संदर्भ में यह बयान काफी महत्वपूर्ण है कि प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी अगली सरकार बना लेगी।
उल्लेखनीय है कि दो दिन पहले ही भारतीय जनता पार्टी की नई दिल्ली में हो रही राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में जेपी नड्डा का पार्टी अध्यक्ष पद पर कार्यकाल अगले साल तक बढ़ा दिया गया है। यानी वे जून 2024 तक पार्टी के अध्यक्ष बने रहेंगे और इसी बीच में इसी साल के अंत में राजस्थान में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं।

पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा का कहना है कि इस साल होने वाले विधानसभा के चुनाव पार्टी के लिए काफी महत्वपूर्ण है और पार्टी किसी राज्य को नहीं खोना चाहती। दरअसल भारतीय जनता पार्टी हाल ही में संपन्न हुए हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव के नतीजों से दोहरा सबक लेना चाहती है।

एक तो यह कि पार्टी नहीं चाहती कि हिमाचल की तरह भारतीय जनता पार्टी सरकार को खो दे। जबकि पार्टी यह भी चाहती है कि राजस्थान में हर पांच साल में सरकार बदलने की रवायत बरकरार रहे। यानी कम से कम इतना तो हो कि अगले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी फिर से अस्तित्व में आए।

जहां पिछले तकरीबन तीन दशक से लगातार हर पांच साल बाद विधानसभा चुनाव के उपरांत सरकार बदलने की रवायत रही है यानी एक बार कांग्रेस की तो दूसरी बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार। जेपी नड्डा राजस्थान में इस साल हो रहे विधानसभा चुनाव में सरकार बनाने का दावा तो कर रहे हैं, जबकि यहां प्रदेश में विधानसभा चुनाव में पार्टी का नेतृत्व कौन करेगा, यह अभी तय नहीं हो पा रहा है।

क्योंकि यहां एक नहीं लगभग आधा दर्जन ‘सत्ता केंद्र’ बने हुए हैं और इसी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान ही पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव अलका गुर्जर ने एक और बयान देकर इस विवाद को और हवा दी है कि राजस्थान में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को बागडोर संभालना चाहिए यानी वह यह कहना चाहती है कि राजस्थान में अगला विधानसभा चुनाव गजेंद्र सिंह शेखावत को चेहरा बनाकर लड़ा जाए। कमान शेखावत के हाथों में सौंपी जानी चाहिए।

अब शायद यह बात पार्टी में सक्रिय अन्य सत्ता केंद्रों को हजम न हो क्योंकि निश्चित रूप से यह दलील उनको नागवार गुजरने वाली है। खासतौर से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की अगुवाई वाले प्रदेश के सबसे ताकतवर माने जाने वाले मगर पिछले चार सालों से लगातार पार्टी स्तर पर उपेक्षित खेमे को रास आने वाली नहीं है। निश्चित रूप से श्रीमती राजे समर्थक ऎसे दावा करने वाले लोगों के खिलाफ आवाज बुलंद करेंगे।

जेपी नड्डा का पार्टी अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल बढ़ाए जाने के साथ ही यह भी संकेत मिल गए हैं कि राजस्थान में भी प्रदेश अध्यक्ष को अभी बदला नहीं जाएगा। कम से कम राजस्थान विधानसभा के चुनाव होने तक तो। यहां के अध्यक्ष सतीश पूनिया का कार्यकाल भी नड्डा की तरह ही समाप्त हो चुका है, लेकिन उम्मीद है कि जा रही है कि नड्डा की तरह सतीश पूनिया का कार्यकाल बढ़ा दिया जाए।

वैसे सतीश पूनिया तो खुद ही प्रदेश में पार्टी के एक सत्ता केंद्र का नेतृत्व कर रहे हैं। जबकि अन्य नेताओं में श्रीमती राजे के अलावा गुलाब चंद कटारिया, राजेंद्र सिंह राठौड़ ओम माथुर और डॉ. किरोडी लाल मीणा तक के अपने सत्ता केंद्र हैं। हर कोई मुख्यमंत्री का दावेदार बना हुआ है, जबकि पार्टी स्तर पर यह लगातार कहा जा रहा है कि पार्टी किसी को भी मुख्यमंत्री का चेहरा प्रस्तुत करके विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेगी।

विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी ही मुख्यमंत्री के बारे में फैसला करेगी और रहा सवाल विधासभा चुनाव लड़ने का तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही चेहरा सामने रखकर पार्टी की अगला विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा है। बात करें अगले विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की राजनीतिक स्थिति की तो गंभीर बिखराव के दौर से गुजर रही पार्टी की वर्तमान में क्या हालत है, इसका अनुमान हाल ही में स्थगित की गई जन आक्रोश सभाओं से लगाया जा सकता है।

जिसमें ज्यादातर स्थानों पर पार्टी की अपेक्षाओं के अनुरूप न तो कार्यकर्ता जुटे और जनता का तो जुड़ने का तो सवाल ही नहीं। इसके विपरीत अभी अपार जनसमर्थन के साथ कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा जब राजस्थान में एक सप्ताह से भी अधिक के प्रवास के दौरान गुजरी है तो उसमें अपार जनसमूह की भागीदारी देखी गई।

वहीं भारतीय जनता पार्टी को जन आक्रोश सभाओं की स्थिति को देखते हुए वैश्विक महामारी कोविड़-19 की एक और लहर की आशंका की आड़ में उसे स्थगित करना पड़ा। हालांकि ऐसी सलाह केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कांग्रेस को भी भारत जोड़ो यात्रा को स्थगित करने के संबंध में दी थी, जो काम में आई नहीं।