नई दिल्ली। पेट्रोल और डीजल की कीमत में एक बार फिर उछाल देखने को मिल सकता है। भारत के लिए क्रूड कॉस्ट यानी कच्चे तेल की लागत (crude cost) गुरुवार को बढ़कर 121.28 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गई है जो नौ मार्च, 2012 के बाद इसका उच्चतम स्तर है।
तब यह 125.1 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गई थी। इससे जून में मंथली एवरेज 118.3 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गया। इससे पहले अप्रैल, 2012 में यह कीमत 118.6 डॉलर प्रति बैरल पहुंची थी। देश में अंतिम बार छह अप्रैल को पेट्रोल और डीजल की कीमत में अंतरराष्ट्रीय कीमत के मुताबिक बदलाव हुआ था। पिछले महीने सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में कटौती की थी।
देश के कई शहरों में पेट्रोल की कीमत 100 रुपये और डीजल की कीमत 90 रुपये के पार पहुंच गई थी। बढ़ती महंगाई से राहत देने के लिए केंद्र सरकार ने 22 मई को एक्साइज ड्यूटी में कटौती की थी। पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी में आठ रुपये और डीजल पर छह रुपये की कमी की गई थी। इससे सरकारी खजाने पर सालाना एक लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा।
कच्चे तेल की कीमत में बढ़ोतरी से सरकारी तेल कंपनियों का मुनाफा प्रभावित होगा। इसकी वजह यह है कि कई दिनों से पेट्रोल-डीजल की कीमत में कोई बदलाव नहीं हुआ है जबकि इस दौरान कच्चे तेल की कीमत में भारी इजाफा हुआ है। भारत अपनी जरूरत का 85 फीसदी तेल आयात करता है। इंडियन बास्केट ग्लोबल बेंचमार्क ब्रेंट (Brendt) को फॉलो करता है। इंडियन बास्केट में इसका वेटेज 24 फीसदी है। ब्रेंट की कीमत में पिछले साल से काफी तेजी आ रही है। इसकी वजह यह है कि मांग पटरी पर लौट आई है और सप्लाई टाइट बनी हुई है। इसकी वजह यह है कि ओपेक प्लस देश जरूरत के मुताबिक सप्लाई नहीं कर रहे हैं।
यूक्रेन पर रूस के हमले (Russia-Ukraine war) के बाद कच्चे तेल की कीमत में भारी उछाल आया था। एक समय यह 139 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया था जो 2008 के बाद इसका उच्चतम स्तर था। लेकिन सरकारी तेल कंपनियों ने इसके मुताबिक पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं की थी।