किसानों की कम दिलचस्पी से उत्पादक प्रांतों में तुवर की बिजाई 8 प्रतिशत कम

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नई दिल्ली। खरीफ सीजन में उत्पादित होने वाली सबसे प्रमुख दलहन फसल- अरहर (तुवर) की खेती में इस बार किसानों की दिलचस्पी कुछ कम देखी जा रही है जिससे इसका बिजाई क्षेत्र गत वर्ष से पीछे चल रहा है।

तीन शीर्ष उत्पादक प्रांतों- कर्नाटक, महाराष्ट्र एवं गुजरात में तुवर का रकबा विशेष रूप से घटा है क्योंकि वहां किसानों का एक वर्ग तुवर के बजाए मक्का, कपास एवं तिलहन आदि की तरफ ज्यादा आकर्षित हो गया है। वैसे तेलंगाना में ऐसा नहीं है और वहां अरहर के उत्पादन क्षेत्र में कुछ बढ़ोत्तरी हुई है।

केन्द्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि चालू खरीफ सीजन के दौरान 25 जुलाई तक राष्ट्रीय स्तर पर तुवर का कुल उत्पादन क्षेत्र 34.90 लाख हेक्टेयर पर ही पहुंच सका जो पिछले साल की समान अवधि के बिजाई क्षेत्र 38 लाख हेक्टेयर से 3.10 लाख हेक्टेयर या करीब 8 प्रतिशत कम है।

उल्लेखनीय है कि इस बार अरहर का पंचवर्षीय औसत क्षेत्रफल 44.71 लाख हेक्टेयर आंका गया है जिसके मुकाबले इसका रकबा अभी करीब 10 लाख हेक्टेयर पीछे है।समीक्षाधीन अवधि के दौरान तुवर का उत्पादन क्षेत्र कर्नाटक में 15.42 लाख हेक्टेयर से घटकर 13.01 लाख हेक्टयेर पर अटक गया जबकि राज्य कृषि विभाग ने इसके बिजाई क्षेत्र का लक्ष्य 16.80 लाख हेक्टेयर नियत कर रखा है।

कर्नाटक का सबसे प्रमुख तुवर उत्पादक जिला- कलबुर्गी में इस दलहन का रकबा 5.35 लाख हेक्टेयर पर पहुंचा है जबकि आगे यह सुधरकर 6 लाख हेक्टेयर तक पहुंच सकता है क्योंकि कुछ क्षेत्रों में बिजाई की प्रक्रिया अभी जारी है।

लेकिन घरेलू बाजार भाव कमजोर होने से अरहर के कुछ परम्परागत उत्पादक किसान इस बार मक्का, कपास एवं गन्ना की ओर मुड़ गए हैं। कलबुर्गी (गुलबर्गा) स्थित कर्नाटक प्रदेश रेड ग्राम ग्रोअर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष का कहना है कि बाजार भाव में नरमी का माहौल रहने से इस बार तुवर के उत्पादन क्षेत्र में गिरावट आ सकती है।

कलबुर्गी में इसका दाम घटकर 5500-6700 रुपए प्रति क्विंटल के बीच आ गया है जो 2024-25 सीजन के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 7550 रुपए प्रति क्विंटल तथा अगले सीजन (2025-26) के लिए घोषित एमएसपी 8000 रुपए प्रति क्विंटल से काफी नीचे है।