झालावाड़। राजस्थान की आरजीएचएस योजना में चल रहे बड़े घोटाले का पर्दाफाश हुआ है, जो सीधे तौर पर सरकारी खजाने तक पहुंचने वाले फर्जी रास्तों को उजागर करता है। इस बार पकड़ में आया आरोपी कोई आम आदमी नहीं, बल्कि सहकारी उपभोक्ता मेडिकल स्टोर का संचालक कमलेश राठौर, जिस पर ₹25,000 का इनाम घोषित था।
पुलिस अधीक्षक अमित कुमार के अनुसार, कमलेश और उसके साथी अस्पताल के अंदर बैठे कर्मचारी वर्षों से लाखों रुपये का सरकारी धन हड़प रहे थे। कहानी की शुरुआत तब हुई जब एक फर्जी ओपीडी पर्ची का बिल सीएमएचओ कार्यालय में भेजा गया। बिल की जांच में भारी गड़बड़ी पकड़ में आई।
पुलिस ने जैसे ही डॉक्टर से पूछताछ की, मामला और गहरा हुआ। झलरापाटन के राजकीय सैटेलाइट अस्पताल की अंदरूनी दुनिया अब आम जनता के सामने खुल रही थी—जहां मरीजों के नाम पर फर्जी पर्चियां तैयार की जा रही थीं और महंगी दवाइयां व जांचें लिखवाकर सरकारी खजाने को चूना लगाया जा रहा था।
पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए एक विशेष टीम बनाई। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक चिरंजीलाल मीणा और पुलिस उपाधीक्षक हर्षराज सिंह खरेड़ा ने टीम को निर्देशित किया। तकनीकी जांच और फील्ड सर्विलांस के बाद कमलेश राठौर को इंदौर से 40 किलोमीटर दूर पीथमपुर से पकड़ लिया गया। गहन पूछताछ के बाद आरोपी न्यायिक हिरासत में भेजा गया।
जांच में सामने आया कि कमलेश राठौर और अस्पताल का कंप्यूटर ऑपरेटर राहुल कुमार जैन एक योजना के तहत काम कर रहे थे। वे मरीजों की फर्जी ओपीडी पर्चियां तैयार करते और डॉक्टर की सील और हस्ताक्षर का दुरुपयोग कर बिल पास कराते थे। राहुल को पहले ही गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेजा जा चुका है।
पुलिस टीम के हेड कांस्टेबल मनेन्द्र चौधरी, हेड कांस्टेबल गौतम चंद, कांस्टेबल मांगीलाल, कांस्टेबल सुरेश और साइबर थाना से कांस्टेबल रवि सेन ने इस ऑपरेशन में अहम भूमिका निभाई। हर कदम पर तकनीकी और फील्ड जांच का तालमेल इस बड़े घोटाले को सुलझाने में निर्णायक साबित हुआ।
यह मामला सिर्फ फर्जी बिलों का नहीं, बल्कि सिस्टम के भीतर चल रहे षड्यंत्र का खुलासा है। सरकारी योजनाओं का दुरुपयोग और अधिकारियों की मिलीभगत ने इस घोटाले को लंबा खींचा। पुलिस की गिरफ्तारी ने साबित कर दिया कि सच्चाई हमेशा सामने आती है, चाहे कितने भी जाल बिछाए गए हों।

