नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की अगली मौद्रिक नीति समिति (MPC) की मीटिंग 29 सितंबर से 1 अक्टूबर 2025 तक होने वाली है। इस मीटिंग में RBI अपनी रीपो रेट और मौद्रिक नीति के अगले कदम का ऐलान करेगा।
SBI रिसर्च के अनुसार, इस समय 25 बेसिस पॉइंट (bps) की दर कटौती सबसे सही विकल्प होगी। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि हाल के दिनों में देश और विदेश के बाजारों में यील्ड्स यानी रिटर्न बढ़े हैं, इसलिए RBI को अपनी नीति स्पष्ट और संतुलित तरीके से बताना बहुत जरूरी है।
SBI रिसर्च के अनुसार, GST में बदलाव और कम मुद्रास्फीति की वजह से अब RBI के लिए दरें कम करना सही कदम होगा। जून के बाद से महंगाई स्थिर है और FY27 में CPI लगभग 4% या उससे कम रहने की संभावना है। GST बदलाव के कारण अक्टूबर में यह 1.1% तक जा सकती है, जो 2004 के बाद सबसे कम है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगर RBI अभी दरें नहीं घटाता, तो इसे टाइप 2 एरर माना जाएगा। यानी नीति को ध्यान में लिए बिना कोई बदलाव नहीं करना। ऐसे समय में, जब महंगाई कम है, दरों में कटौती करना बाजार की उम्मीदों के अनुरूप होगा और निवेशकों को अच्छा संकेत देगा।
दुनिया की स्थिति और केंद्रीय बैंकों का रोल
सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के केंद्रीय बैंक भी मौद्रिक नीति को लेकर सतर्क हैं। कई देशों ने हाल ही में दरें कम की हैं, लेकिन बाजार अभी स्थिर नहीं है। वैश्विक वित्तीय बाजारों में यील्ड्स (सिक्योरिटी रिटर्न) बढ़ रहे हैं, जो एक आम समस्या बन गई है।
अमेरिका में फेडरल रिजर्व (Fed) ने हाल ही में अपनी Fed Funds Rate 4% से 4.25% तक घटा दी है। Fed के अनुसार, कामगारों की कम संख्या और कम लोगों का वर्कफोर्स में हिस्सा लेना इस कदम का कारण है
भारत के सरकारी और राज्य कर्ज में बदलाव
भारत में सरकारी और राज्य विकास ऋण (SDL) में हाल ही में बढ़ोतरी देखी गई है। SBI रिसर्च के अनुसार, राज्य सरकारों का कर्ज बढ़ रहा है, जिससे वित्तीय दबाव बढ़ सकता है। FY2018 में लंबी अवधि वाले SDLs का हिस्सा 22% था, जो FY2026 में बढ़कर 71% हो गया। यह खासकर उन कर्जों में हुआ है, जिनकी मैच्योरिटी 10 साल या उससे ज्यादा है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें अपने कर्ज की मैच्योरिटी लंबी करने की कोशिश कर रही हैं। इसके लिए उन्होंने “Switch” का इस्तेमाल किया, यानी छोटे समय वाले कर्ज को लंबे समय वाले कर्ज से बदलना। इससे राज्यों पर तुरंत चुकाने का दबाव कम होगा और वित्तीय स्थिति स्थिर रहेगी।
विदेशी निवेशक और FPI का रोल
रिपोर्ट में कहा गया है कि विदेशी निवेशक (FPI) अब भारत के बॉन्ड मार्केट में ज्यादा एक्टिव हो रहे हैं। Fully Accessible Route (FAR) के तहत उन्हें ज्यादा निवेश करने की सुविधा मिली है। फिलहाल FPIs के पास बॉन्ड में लगभग 3 लाख करोड़ रुपये हैं। वहीं, इनका इक्विटी में हिस्सा बाजार पूंजीकरण का करीब 16% है।
भविष्य में अमेरिका और भारत की ब्याज दरों में अंतर बढ़ सकता है। साथ ही, भारतीय बॉन्ड को वैश्विक इंडेक्स में शामिल करने की संभावना है। इससे विदेशी निवेशकों की मांग बढ़ेगी और बाजार में तरलता (Liquidity) बेहतर होगी।

