जयपुर। देश के पश्चिमी प्रान्त- राजस्थान में रबी सीजन के दौरान किसान चुनिंदा फसलों की खेती को विशेष प्राथमिकता देते हैं जिसमें गेहूं, जौ, चना एवं सरसों मुख्य रूप से शामिल है।
इसके अलावा वहां कुछ अन्य दलहनों तथा अलसी आदि की बिजाई भी होती है लेकिन उसका क्षेत्रफल सीमित रहता है। राजस्थान सरसों एवं जौ का सबसे प्रमुख उत्पादक प्रान्त है और वहां गेहूं तथा चना का भी भरपूर उत्पादन होता है।
आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले साल की समान अवधि की तुलना में मौजूदा रबी सीजन के दौरान राजस्थान में गेहूं का उत्पादन क्षेत्र 24 नवम्बर तक 18.53 हेक्टेयर से 6.89 लाख हेक्टेयर उछलकर 25.42 लाख हेक्टेयर, जौ का बिजाई क्षेत्र 2.89 लाख हेक्टेयर से 33 हजार हेक्टेयर सुधरकर 3.22 लाख हेक्टेयर,
चना का क्षेत्रफल 18.53 लाख हेक्टेयर से 1.75 लाख हेक्टेयर बढ़कर 20.28 लाख हेक्टेयर, सरसों का उत्पादन क्षेत्र 31.65 लाख हेक्टेयर से 1.16 लाख हेक्टेयर बढ़कर 32.80 लाख हेक्टेयर तथा तारामीरा का रकबा 75 हजार हेक्टेयर से 40 हजार हेक्टेयर सुधरकर 1.15 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया।
अलसी की बिजाई पहले पिछड़ रही थी लेकिन अब 10 हजार हेक्टेयर से ऊपर पहुंच गई है जो पिछले साल के बराबर ही है। अन्य दलहनों का रकबा कुछ पीछे चल रहा है।
राजस्थान में इस वर्ष दक्षिण-पश्चिम मानसून सीजन के दौरान भरपूर वर्षा हुई और कई क्षेत्रों में खरीफ फसलों से थोड़ा-बहुत नुकसान भी हुआ।
लेकिन इसका सकारात्मक पक्ष यह रहा कि इससे खेतों की मिटटी में नमी का अंश बढ़ गया और बांधों-जलाशयों में भी पानी का स्तर ऊंचा हो गया। इससे किसानों को सही समय पर रबी फसलों की बिजाई आरंभ करने में सहायता मिल रही है।

