इस्लामाबाद। Pahalgam terror attack: भारत को लेकर पाकिस्तानियों की नफरत और युद्ध उन्माद बताता है कि दिल्ली को अब मुंह तोड़ जवाब देना चाहिए। एक ऐसा जवाब जो रणनीति की कसौटी पर सही उतरे और भारत की शर्तों पर हो। पाकिस्तान एक अस्थिर, विभाजित और चरमपंथी विचारधाराओं से ग्रसित एक नाकाम देश है।
आंतरिक विद्रोह, आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता से घिरा पाकिस्तान पतन के कगार पर है। लेकिन कुछ देशों ने पाकिस्तान को अपने फायदे के लिए अभी भी बचाकर रखा हुआ है। अगर कुछ देशों से पाकिस्तान को मदद नहीं मिलती, तो ये इस्लामिक देश कब तक धूल में मिल जाता।
नाकाम और पतनशील होने के बावजूद वो पाकिस्तान का नफरत ही है, जिसे हमने पहलगाम हमले में देखा, जब पाकिस्तान के शह पर आतंकवादियों ने लोगों से उनका धर्म पूछकर मार डाला। इस घटना ने भारत को झकझोर कर रख दिया है।
द प्रिंट में लिखते हुए स्ट्रैटजिक एक्सपर्ट स्वाति राव ने कहा है कि भारत की सेना पाकिस्तान को सही सयम पर सख्त जवाब देने के लिए रणनीति तैयार कर रही है। कई स्ट्रैटजिक कदम पहले ही उठाए जा चुके हैं, जिनमें सिंधु संधि को सस्पेंड करना शामिल है। लेकिन भारत की ये कार्रवाईयां शुरूआती हैं और फिलहाल के लिए सिर्फ संकेतक हैं।
भारत निश्चित तौर पर कुछ बड़ा करने वाला है। लेकिन पहलगाम हमला, ऊपर से जितना दिखता है, ये बस इतना नहीं है। बल्कि इसके पीछे जटिल साजिशें हैं। इसके पीछे अंतर्राष्ट्रीय चालें हैं और हमें समझने की जरूरत है कि आखिर पाकिस्तान, किसके बूते उछल रहा है?
स्वाति राव के मुताबिक इस सवाल में कई परतें हैं। लेकिन जब पाकिस्तान की सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने की बात आती है तो चीन और तुर्की सबसे आगे दिखते हैं। लिहाजा जब भारत पाकिस्तान को संबोधित करता है, इस आतंकवादी घटना में जवाबदेही तय करने की बात करता है, तो भारत को चीन और तुर्की की भागीदारी को भी संबोधित करना होगा।
प्रिंस शी जिनपिंग के देश चीन ने लगातार पाकिस्तान को हथियार सौंपे हैं, तकनीकी सहायता दी हैं और आर्थिक निवेश किया है। जिससे पाकिस्तान की सेना ने अपनी क्षमताओं को बढ़ाया है। इसके अलावा पाकिस्तान ने पीओके के वो क्षेत्र चीन को दे दिए, जिससे उसे भारत के खिलाफ रणनीतिक लाभ मिलते हैं। जैसे शक्सगाम घाटी। ये पहले पाकिस्तान के पास थी, लेकिन दशकों पहले पाकिस्तान ने इसे चीन को सौंप दिया गया, जिससे बीजिंग को भारत पर अतिरिक्त दबाव डालने का मौका मिल गया।
इसके अलावा पाकिस्तान को मदद देने वाला दूसरा देश तुर्की है। तुर्की से पाकिस्तान को सिर्फ सैन्य मदद नहीं, बल्कि वैचारिक मदद भी मिलती है। तुर्की हमेशा से पाकिस्तान को जिहाद के नये नये अध्याय सिखाता है। उसे इस्लामिक कट्टरपंथ के कुएं में और धकेलता है और इससे पाकिस्तान की महत्वाकांक्षाओं को और बल मिलता है।
ये भारत के सामने चीजों को मुश्किल बनाती हैं। 1998 में न्यूयॉर्क टाइम्स में टिम वेनर ने लिखा था कि पाकिस्तान को परमाणु बम बनाने में सबसे ज्यादा मदद चीन ने ही की थी। चीन ने पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के लिए खांका तैयार किया, कंपोनेंट्स दिए और उसके बिना पाकिस्तान का परमाणु हथियार कार्यक्रम अस्तित्व में नहीं आता।
चीन दे रहा पाकिस्तान को हथियार
भारत के खिलाफ अगर सिर्फ चीन ही पाकिस्तान को हथियारों की सप्लाई करता रहता तो स्थिति इतनी भयावह नहीं होती। क्योंकि चीनी हथियारों की क्वालिटी हमेशा से सवालों में रहे हैं। जैसे उसका फाइटर जेट एफसी-31 को कई एक्सपर्ट्स बेकार कह चुके हैं। वहीं 2021 में चीन ने पाकिस्तान को जो भारी डिस्काउंट पर पनडुब्बी दिए थे, वो भी ऑपरेशनल स्टैंडर्ड पर नाकाम हो गई थी। लेकिन भारत के लिए असल चिंता की बात है तुर्की।
तुर्की के ‘एशिया एन्यू इनिशिएटिव’ का मकसद भी भारत के पड़ोसी इस्लामिल देशों से इस्लाम के नाम पर संबंधों को मजबूत करना है। इसके पाकिस्तान को हथियार सौंपे हैं। चीन के बाद पाकिस्तान, तुर्की से ही सबसे ज्यादा हथियार खरीदता है, जिसमें ‘इस्लामिक टच’ होता है। इसमें जिहाद की चाशनी मिली होती, जिसके दम पर पाकिस्तान एक नाकाम और पतनशील राष्ट्र होने के बावजूद भारत के सामने उछलता रहता है।

