कलकत्ता। ममता बनर्जी आज तीसरी बार बंगाल के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। ये दूसरा मौका है जब ममता बंगाल विधानसभा की विधायक नहीं होने के बाद भी प्रदेश की कमान संभाल रही हैं। इससे पहले 2011 में जब ममता पहली बार मुख्यमंत्री बनी थीं तो वो लोकसभा सांसद थीं।
इस बार वो नंदीग्राम से अपने पुराने सहयोगी और भाजपा उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी से चुनाव हार गई हैं। हार के बाद भी ममता राज्य की मुख्यमंत्री बन सकती हैं, लेकिन छह महीने के भीतर उन्हें राज्य की किसी विधानसभा सीट से चुनाव जीतना होगा। अगर ऐसा नहीं होता तो उन्हें मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ेगा।
संविधान का आर्टिकल 164(4) कहता है कि कोई भी व्यक्ति किसी राज्य में मंत्री पद की शपथ ले सकता है, लेकिन छह महीने के भीतर उसे किसी विधानसभा क्षेत्र से चुनकर आना होगा। अगर राज्य में विधान परिषद है तो वो MLC के रूप में भी चुना जा सकता है। मुख्यमंत्री भी एक मंत्री होता है, इसलिए यही नियम उस पर भी लागू होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने 2001 में किसी मंत्री या मुख्यमंत्री को बिना किसी सदन का सदस्य बने दोबारा शपथ लेने पर रोक लगा दी थी। ये आदेश पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के बेटे तेज प्रकाश सिंह को मंत्री बनाए जाने के मामले में आया था। अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोई भी व्यक्ति बिना किसी सदन का विधायक या MLC बने दो बार मंत्री नहीं बनाया जा सकेगा। बंगाल में 1969 में विधान परिषद खत्म कर दी गई थी। ऐसे में ममता को मुख्यमंत्री बने रहने के लिए छह महीने के भीतर किसी सीट से विधानसभा चुनाव जीतना ही होगा।
ममता उप-चुनाव में हार गईं तो क्या होगा
उप-चुनाव में हार के बाद ममता को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के अलावा कोई और विकल्प नहीं रह जाएगा। मुख्यमंत्री रहते नेता चुनाव नहीं हारते, ऐसा नहीं कह सकते हैं। 2009 में झारखंड के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन तमाड़ सीट से उप-चुनाव हार गए थे। इसके बाद झारखंड में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा था। संभवत: ये दूसरा मौका था जब कोई सीएम उप-चुनाव में हारा था।