मिशन मस्टर्ड 2025: सरसों भारत की तिलहन क्रांति का नेतृत्व करने को तैयार

0
612

कोटा। पिछली सदी में हरित और श्वेत क्रांति के साक्षी होने के बाद, भारत इस बार कृषि क्षेत्र में पीली क्रांति की ओर अग्रसर है, इस बार तिलहन उत्पादन में क्रांति का नेतृत्व सरसों द्वारा किया जाएगा, जिसे जल्द ही देश के शीर्ष तिलहन के रूप में ताज पहनाया जा सकता है। यह बात साॅल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया द्वारा आयोजित एक वेविनार में खाद्य तेल उद्योग के दिग्गजों और प्रतिष्ठित सरकारी गणमान्य लोगों द्वारा आयोजित चर्चाओं में उभर कर सामने आई।

एसएई के अध्यक्ष अतुल चतुर्वेदी, ने कहा- एसईए सजग रूप से घरेलू तेल उत्पादन को बढ़ाकर खाद्य तेलों में भारत की आयात निर्भरता को कम करने के लिए काम कर रहा है। इस उद्देश्य के लिए, एसईए ने मिशन मस्टर्ड शुरू किया है जिसके द्वारा 2025 तक सरसों के उत्पादन को 20 मिलियन टन तक बढ़ाने की योजना है। इसे बेहतर कृषि पद्धतियों, सही प्रौद्योगिकी के उपयोग, गुणवत्ता युक्त बीज और अन्य इनपुट मैनेजमेंट से प्राप्त किया जा सकता है।

खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के सचिव सुधांशु ने कार्यक्रम में कहा- सरसों अपने व्यावसायिक व्यवहार्यता और स्वास्थ्य के अनुकूल गुणों के कारण भारत के समग्र तिलहन उत्पादन को बढ़ाने की बहुत बड़ी क्षमता रखता है।

सुधांशु पांडे ने कहा -‘‘सरसों पर प्रतिफल लगभग रुपये 31000 प्रति हेक्टेयर है, जो कि गेहू के लिए रुपये 26000 प्रति हेक्टेयर और चावल के रुपये 22000 प्रति हेक्टेयर के मुकाबले ज्यादा है। सरसों की कीमतों में मौजूदा वृद्धि के साथ प्रतिफल में कई गुना सुधार हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि उच्च लागत के कारण सोयाबीन पर रिटर्न कम हुआ है। ‘‘उन्होंने आगे कहा कि किसानों को उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए सरसों के तेल की पर्याप्त मांग सुनिश्चित करनी चाहिए।

शुभा ठाकुर, सयुक्त सचिव, कृषि मंत्रालय, जो तिलहन मिशन की प्रमुख हैं, ने कहा कि सरकार भी सरसों की खेती को बढ़ावा देने के लिए उत्सुक है और सरसों मिशन सरकार द्वारा पहले ही लांच किया जा चुका है। उन्होंने आगे कहा कि सरसों के अलावा, सरकार तिलहनी फसलों जैसे मूंगफली और इसके अलावा पूर्वी भारत में चावल की परती भूमि का उपयोग करने व इंटरक्राॅपिंग को बढ़ावा देने के अलावा रकबे को बढ़ावा देने पर भी ध्यान दे रही है।

2019 से राजस्थान में साॅलिडारिडाड के साथ संयुक्त रूप से एसईए द्वारा विकसित मस्टर्ड माॅडल फाॅम्स् के बेहतर परिणाम, कृषि प्रथाओं, बेहतर बीज, प्रौद्योगिकी के उपयोग के साथ उत्पादकता में 49 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। यह सरसों को भारत के तिलहन उत्पादन को बढ़ाने के लिए पसंदीदा विकल्प है। कोविड के बाद की दुनिया में भी, ओमेगा-3 जैसे स्वास्थ्य लाभ और मोनोअनसेचुरेटेड वसा की उच्च सामग्री के कारण सरसों को सबसे पसंदीदा खाद्य तेल के रूप में देखा जाता है।

अंगुश मल्लिक, सीईओ और प्रबंध निदेशक, अदानी विल्मर लि. ने कहा- सोयाबीन में 18 प्रतिशत की तुलना में सरसों में तेल की मात्रा 40 प्रतिशत अधिक है। इसमें 36 प्रतिशत प्रोटीन है और यह बहुत कम पानी की आवश्यकता वाली एक जलवायु-स्मार्ट फसल है। 1.3 अरब भारतीय आबादी के लगभग 80 करोड़ लोग खाना पकाने के लिए सरसों के तेल का उपयोग करते हैं।

विजय डाटा, अध्यक्ष, एसईए रेप-मस्टर्ड प्रमोशन काउंसिल, ने कहा- चालू विपणन वर्ष में भारत का सरसों का उत्पादन, जो कि अक्टूबर से शुरू हुआ है से 8.5 से 9 मिलियन टन के शीर्ष स्तर पर पहुचने को तैयार है, जो एक उच्च रिकाॅर्ड है। आने वाले वर्षों में बड़े पैमाने पर सरसों की खेती के लिए किसानों को और अधिक प्रोत्साहन देने के लिए रिकाॅर्ड उच्च कीमतों की संभावना है, जो अगले पांच वर्षों में देश को 20 मिलियन टन का लक्ष्य हासिल करने में मदद करेगा। यह आने वाले वर्षों में सरसों को भारत का शीर्ष तिलहन बना देगा।

यह आयोजन सीएनबीसी की कमोडिटी एडिटर मनीषा गुप्ता द्वारा संचालित प्राइस आउटलुक पर जीवंत चर्चा के साथ शुरू हुई। दोराब मिस्त्री प्रसिद्ध विश्लेषक ने टिप्पणी कर कहा कि वर्तमान रैलियां काफी हद तक भावी ग्रीन बायो डीजल जनादेश से प्रेरित हैं, जो यूएसए में बिडेन के सत्ता में आने के साथ हैं। सभी तेजी के कारकों की कीमत पहले ही तय की जा चुकी है और बाजार में तेजी देखी जा रही है। वेविनार में इस बात पर सहमति थी कि वर्तमान स्तरों से उपर जाने की संभावनाऐं सीमित है और प्लेयर्स को सतर्क रहना चाहिए।