नई दिल्ली। पेट्रोल-डीजल की रिकॉर्ड कीमतों के बीच पेट्रोलियम मंत्रालय की संसदीय समिति ने केंद्र सरकार व राज्यों को विमर्श कर टैक्स की दरें घटाने को कहा है। समिति की रिपोर्ट बुधवार को सदन के पटल पर रखी गई। इसमें समिति ने कहा है कि आम ग्राहकों पर पेट्रो उत्पाद कीमतों के बढ़ते बोझ के लिए केंद्र सरकार की तरफ से लगाए जाने वाला उत्पाद शुल्क और राज्यों का मूल्य वर्धित कर (वैट) ही जिम्मेदार है। समिति ने यह भी कहा है कि ईधन की कीमतों में हो रही वृद्धि से देश में महंगाई पर पड़ने वाले असर को सहन नहीं किया जा सकता।
हाल के वर्षों में यह पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस पर गठित संसदीय समिति की पहली रिपोर्ट है, जिसमें मूल्य वृद्धि के लिए सीधे तौर पर केंद्र सरकार और राज्यों को जिम्मेदार ठहराते हुए उनसे उचित कदम उठाने को कहा गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना महामारी में कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट के बावजूद देश में पेट्रो उत्पादों की कीमतों में कोई राहत नहीं मिली। तेल कंपनियां ईधन की कीमतों में से 36 फीसद उत्पाद शुल्क के तौर पर और 23 से 28 फीसद राज्यों को बतौर वैट भुगतान करती हैं।
इसके अलावा डीलर्स को तीन से चार फीसद का कमीशन भी दिया जाता है। सरकारी क्षेत्र की तेल मार्केटिंग कंपनियों (ओएमसी) ने समिति को बताया है कि उन्हें पेट्रोल व डीजल की खुदरा कीमत में प्रति लीटर एक रुपये का ही मुनाफा होता है। इसका कुछ हिस्सा तेल कंपनियां अपने शेयरधारकों को बतौर लाभांश भी देती हैं। समिति मानती है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कम कीमतों का फायदा आम जनता को भी मिलना चाहिए।