होम लोन को रीपो रेट से जोड़ने का सुझाव

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पिछले तीन साल में रिजर्व बैंक ने रीपो रेट में 2 पर्सेंट की कटौती की है, लेकिन वेटेज एवरेज लेंडिंग रेट्स में 1.45 पर्सेंट की ही गिरावट आई है

मुंबई। हाउस होल्ड फाइनेंस पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) की एक समिति ने सुझाव दिया है कि बैंकों के होम लोन रेट को आरबीआई के रीपो रेट से जोड़ना चाहिए। रिजर्व बैंक इसी रेट पर बैंकों को कर्ज देता है। अभी बैंक मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट (एमसीएलआर) के आधार पर होम लोन रेट तय करते हैं।

इस समिति के अध्यक्ष ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में फाइनेंशियल इकनॉमिक्स के प्रोफेसर डॉ. तरुण रामादोरई हैं। रिपोर्ट में लिखा है, ‘बैंकों को ग्राहकों को आरबीआई के रीपो रेट के आधार पर लोन की दरों की जानकारी देनी चाहिए ना कि एमसीएलआर पर आधारित दरों की।

ग्राहक दरों की तुलना आसानी से कर सकें, इसके लिए रीपो रेट और स्प्रेड को मिलाकर उन्हें इसकी जानकारी दी जानी चाहिए। अभी एमसीएलआर और स्प्रेड को जोड़कर उन्हें ब्याज दरों की जानकारी दी जाती है और इस पर रोक लगनी चाहिए।’

रिजर्व बैंक के लिए इन सुझावों को मानना अनिवार्य नहीं है, लेकिन यह पहल ऐसे समय में सामने आई है जब आरबीआई खुद एमसीएलआर बेस्ड सिस्टम से खुश नहीं है। पिछले तीन साल में रिजर्व बैंक ने रीपो रेट में 2 पर्सेंट की कटौती की है, लेकिन वेटेज एवरेज लेंडिंग रेट्स में 1.45 पर्सेंट की ही गिरावट आई है।

इससे पहले 2 अगस्त को रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने कहा था, ‘मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट यानी एमसीएलआर सिस्टम को अप्रैल 2016 में लागू किया गया था। इसे इसलिए लाया गया था कि ताकि ग्राहकों को रिजर्व बैंक के पॉलिसी रेट में कमी का जल्द फायदा मिले।

हालांकि, इस सिस्टम के नतीजे अच्छे नहीं रहे हैं।’ उन्होंने कहा था, ‘हमने एक इंटरनल स्टडी ग्रुप बनाया है, जो एमसीएलआर सिस्टम के कई पहलुओं की पड़ताल करेगा और यह बताएगा कि क्या आगे चलकर लोन रेट्स को मार्केट के बेंचमार्क रेट से जोड़ना ठीक रहेगा? यह ग्रुप 24 सितंबर 2017 को अपनी रिपोर्ट पेश करेगा।’

समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि सभी बैंकों को लोन की दरों में बदलाव के लिए एक महीने का रीसेट पीरियड रखना चाहिए। मौजूदा सिस्टम में फ्लोटिंग रेट लोन की दरों में आमतौर पर एक साल में बदलाव होता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा सिस्टम में रेट में बदलाव का ग्राहकों को जल्द फायदा नहीं मिल पा रहा है।