राणा प्रताप सागर डैम में चंबल नदी के पानी के अंदर वीडियोग्राफी करेगा रोबोट

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-दिलीप वधवा
रावतभाटा।
चंबल नदी पर स्थित प्रदेश के सबसे बड़े राणा प्रताप सागर बांध को जीर्णोद्धार का इन्तजार है। इसके लिए विश्व बैक से राशि स्वीकृत होनी है। करीब 50 साल से ज्यादा पुराने बांध के नवीनीकरण में कोई कमी ना रह जाए। इसके लिए जल संसाधन विभाग की ओर से बांध के 17 गेटों की पानी के भीतर रोबोट के माध्यम से वीडियोग्राफी करवाई जाएगी। इस वीडियोग्राफी में लंबे समय से पानी के भीतर रहने से गेटों को हुए नुकसान का आंकलन होगा। गेटों की हालिया स्थिति के पश्चात इन्हें बदलने या मरम्मत करने में सहयोग मिलेगा।

विभागीय जानकारी के अनुसार राणाप्रताप सागर, जवाहर सागर व कोटा बैराज के गेटों की पानी के भीतर वीडियोग्राफी होगी। वीडियोग्राफी का कार्य चेन्नई की एक अनुभवी को दिया गया है। राणाप्रताप सागर बांध में पानी के भीतर वीडियोग्राफी में करीब 33 लाख रूपए की लागत आएगी।फर्म की ओर से संभावित गुरुवार से पानी के भीतर वीडियोंग्राफी का कार्य शुरु कर दिया जाएगा। जिसमें फर्म के अनुभवी लोग नदी की सतह से बोट में बैठ कर पानी के भीतर रोबॉट भेजेंगे और बांध के गेटों की वीडियोग्राफी करेंगे। इस कार्य में करीब एक महिने का समय लगने का अनुमान बताया जा रहा है।

ड्रीप डेम रिहेबिलेशन इम्प्रूव मेंट योजना के अंतर्गत प्रदेश के बड़े छोटे बांधों का जीर्णोद्धार होगा। योजना के दूसरे चरण में राणाप्रताप सागर बांध का जीर्णोद्वार का कार्य शुरु होगा। राणा प्रताप सागर बांध के जीर्णाॅद्वार के लिए विश्व बैंक से 44.8 करोड़ की राशि स्वीकृत होने है। गत वर्ष केंद्रीय जल आयोग की तीन सदस्यी टीम की देखरेख में 18 लोगों की केमेटी ने बांध का निरीक्षण किया। जिन्होंने बांध के जीर्णाॅद्वार होने वाले आवश्यक कार्यों की सौ पन्नों की प्रोजेक्ट पम्पलेट रिपोर्ट तैयार कर उच्चाधिकारियों को भिजवाई थी। अधिकांश कार्य पूरा हो चुका है।

इस कार्य में कही कमी ना रह जाए इसके लिए अब जल संसाधन विभाग बांध के गेटों हालिया स्थिति का पता लगाने को पानी के भीतर वीडियोग्राफी कार्रवाई जा रही हैं। वीडियोग्राफी की रिपोर्ट के आधार पर बांध के गेटों की मरम्मत में खर्च होने वाली राशि को अनुमानित लागत में शामिल किया जाएगा। वर्तमान में बांध की स्थिति को देखते हुए इसे अति शीघ्र मरम्मत व रखरखाव की आवश्यकता है। करीब 35 वर्षों से बांध के चारों स्लूज गेटों को खोला नहीं गया।

सन 1986 में अंतिम बार स्लूज गेट खोलने के असफल प्रयास हुए थे। स्लूज गेटों की 16 एमएम मोटी व 12 टन वजनी लोहे के प्लेट लम्बे समय से पानी के भीतर रहने की वजह से क्षतिग्रस्त होकर बांध की दीवारों से चिपक गई है। इसलिए इन्हें खोलना संभव नहीं है। विभाग की ओर से पिछ्ले साल पानी के भीतर स्लूज गेट की वीडियोग्राफी करवाई गई थी। जीर्णोद्वार में इन्हें बदलने का कार्य किया जाएगा। वहीं बांध दूसरे गेट आए दिन अलाईमेंट गड़बढाने से पूरी तरह बंद नहीं हो पाते है। जिसे बंद करने में विभाग को कड़ी मशक्कत से बंद करने पड़ते है।