मुकेश भाटिया
कोटा। दक्षिण भारत के उत्पादक क्षेत्रों में हल्दी की खड़ी फसल अनुकूल न होने एवं पिछले कई वर्षों के लगे हुए स्टॉक में माल खप जाने से वर्तमान भाव की हल्दी में 10 रुपए प्रति किलो की शीघ्र तेजी के आसार बन गए हैं।
पहले सट्टेबाजी एवं पुराने माल स्टॉक में ज्यादा होने से अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाया होगा। अब ताजा सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक इरोड, वारंगल, दुग्गीराला, कडप्पा, सांगली, निजामाबाद आदि सभी उत्पादक क्षेत्रों में हल्दी की बोई हुई खड़ी फसल में पोल आने की खबर मिल रही है, लेकिन व्यापारी वर्ग ऊपर में बिकी हुई 81/82 रुपए की ईरोड की हल्दी बेच नहीं पाए थे, जो अब 65 रुपए प्रति किलो यहां रह गई है। इस वजह से हल्दी के व्यापार से विश्वास उठ गया है।
यह ध्यान देने वाली बात है कि स्टॉकिस्टों के गले में पिछले चार-पांच वर्षों की पुरानी हल्दी फंसी हुई थी, जो कोविड-19 महामारी में आयुर्वेदिक औषधि के रूप में अतिरिक्त खपत बढ़ जाने से अब केवल चालू वर्ष की ही स्टाक में बची हुई है। कुछ कारोबारियों के पास वर्ष 2019 की भी पड़ी है, लेकिन हल्दी की तैयार फसल में वारंगल एवं दुग्गीराला के किसान हल्दी की गांठ कम बता रहे हैं। इरोड में भी निकासी के बाद गद्ठा छोटा एवं उत्पादकता में कम बता रहे हैं, जिससे पुरानी हल्दी के बिकवाल कम आ रहे हैं।
वायदा व्यापार में भी जनवरी- फरवरी की डिलीवरी बहुत कम आ रही है तथा प्रतिकूल मौसम होने से ईरोड, वारंगल एवं दुग्गीराला आदि उत्पादक क्षेत्रों में प्रत्यक्षदर्शोी हल्दी की खड़ी फसल खराब बता रहे हैं तथा कुछ क्षेत्रों में तो गांठों की साइज 50 प्रतिशत छोटी रह गई है तथा अब हल्दी की गांठ, फसल में बढ़ने का समय नहीं बचा है। अब जो गांठ बनी हुई थी, वह पकने लगी है।
दूसरी ओर नेपाल बांग्लादेश में माल काफी कट चुका है तथा वहां की पूछ-परख आने लगी है, इसके अलावा दूसरे देशों में भी इस महामारी में एंटीबायोटिक के रूप में आयुर्वेदिक खपत बढ़ जाने से भारतीय हल्दी में निर्यातकों की पूछ-परख निजामाबाद लाइन से निकलने लगी है, इन सारी परिस्थितियों को देखते हुए जो हल्दी यहां 66/68 रुपए की बिक रही है, इनमें अब घटने की बिल्कुल गुंजाइश नहीं है। हो सकता है नई फसल आने से पहले 10 रुपए किलो की वृद्धि हो जाए तथा चालू वर्ष हल्दी के लिए तेजी का समय रहने वाला है।