233 रुपए प्रतिदिन में तो आज एक अनपढ़ दिहाड़ी मजदूर (डेली वेज लेबरर) भी नहीं मिलता है। क्या MBBS पास करने के बाद देश के युवा डॉक्टर्स की यही योग्यता है?
–डॉ सुरेश पाण्डेय, नेत्र सर्जन
कोटा। देश भर में लगभग 19 लाख विद्यार्थी नीट एग्जाम में बैठते हैं उनसे से लगभग 41 हज़ार सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस कोर्स के लिए चयनित होते हैं। साढे चार वर्ष तक मेडिकल कोर्स में जी तोड़ मेहनत करने के बाद एमबीबीएस फाइनल ईयर उत्तीर्ण करने के बाद इंटर्नशिप का एक वर्ष आता है। राजस्थान के मेडिकल कॉलेज के इंटर्नशिप कर रहे सभी मेडिकल स्टूडेंट का स्टाइपेंड मात्र सात सजार रुपए प्रति माह है जो देश में सबसे कम है।
233 रुपए प्रति दिन में तो आज एक अनपढ़ दिहाड़ी मजदूर (डेली वेज लेबरर) भी नहीं मिलता है। क्या एमबीबीएस पास करने के बाद देश के युवा डॉक्टर्स की यही योग्यता है? क्या आज भी उनको अपने खर्चे चलाने के लिए माता पिता के सामने हाथ फैलाने होंगे?
क्या इन युवा डॉक्टर्स को देश की संसद की कैंटीन की तरह खाने की कोई सब्सिडी मिलती है? क्या रेंट, ग्रोसरी, पेट्रोल, टैक्स आदि की छूट मिलती है। क्या ये युवा डॉक्टर्स मात्र दिन रात अनवरत रोगियों की सेवा करने के लिए भगवान का दूसरा नाम है, जिसकी ना तो विशेष सांसारिक आवश्यकताएं हैं, ना ही इन डॉक्टर्स के कोई विशेष ख़र्चे नहीं होते है, पब्लिक एवं सरकार का तो शायद यही परसेप्शन है। क्या 233 रुपए प्रति दिन या सात हजार रूपए प्रति माह में मंहगाई के इस युग में खर्चा चलाना संभव है? अथवा पच्चीस वर्ष की आयु में भी इन युवा चिकित्सकों को अपने माता पिता से मासिक ख़र्च भेजने की आशा करनी होगी जिन्होंने बड़े अरमानों से अपने खर्चों में कटौती कर इन्हें डॉक्टर बनने भेजा?
कोरोना काल खण्ड के दौरान थाली बजाने, अस्पतालों पर फ़ूल बरसाकर, डॉक्टर्स का मिथ्या महिमा मंडन करने का क्या तुक था? सरकार द्वारा समय समय पर कोविड वार्ड में ड्यूटी डे रहे डॉक्टर्स को महामारी के आरंभिक दिनों में पी पी ई किट, ग्लव्स, मास्कस, भी पर्याप्त संख्या में नियमित रूप से उपलब्ध नहीं कराए गए।
वैश्विक महामारी के इस कठिन समय में अपने प्राणों की परवाह न करते हुए कोविड पॉजिटिव रोगियों का उपचार करने वाले इन डॉक्टर्स को सेलरी नहीं मिलने या सैलरी काटने के भी समाचार भी प्रकाशित हुएं हैं। अनेकों रेजिडेंट चिकित्सक अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए कोविड संक्रमण के कारण असमय ही इस संसार से प्रस्थान कर गए। जरा सोचें, उनके माता पिता, परिजनों पर क्या बीत रही होगी जिन्होंने बड़े अरमानों के साथ डॉक्टर बनाकर मानवता की सेवा के सपने देखे थे।
कोविड19 (Covid-19) से संक्रमित रोगी के नहीं बच पाने पर अस्पतालों में रोगी के परिजनों या छुट्ट भैया नेताओं द्वारा डॉक्टर्स पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए उनके साथ बदसलूकी के आज भी समाचार पढ़ने को मिलते हैं । देश के अधिकांश छुट भैया नेता धरना प्रदर्शन घेराव करने का प्रथम अध्याय अस्पतालों में ही सीखतें हैं। क्योंकि सरकारी अस्पतालों से बेहतर कोई अच्छी जगह नहीं है, जहां इंसानियत एवम् मानवता की आड़ में राजनीति चमकाई जा सके एवम् मिडिया में गरीबों के मसीहा बनकर न्यूज़ कवरेज लिया जा सके।
सरकारी अस्पताल की इमरजेंसी सर्विसेज का अधिकांश काम रेजिडेंट डॉक्टरों द्वारा देखा जाता है। इन युवा चिकित्सकों में मरणासन्न/चोटिल रोगी को बचाने, इमरजेंसी रोगी की रात-रात भर जागकर इलाज करने की भावना प्रबल होती हैं। दुर्भाग्यवश यदि गंभीर रोगी को यदि बचाना संभव नहीं हो पाता तो रोगियों के उत्तेजित परिजन, छुट भैया नेता इन युवा चिकित्सकों को धमकाने एवम् धोंस जमाने में अपनी शान समझते हैं। जिसके कारण आए दिन अस्पतालों में अपमान/मारपीट/वॉयलेंस का दंश भी इन ट्रेनी इंटर्न/रेजिडेंट डॉक्टरों को ही झेलना पड़ता है।
कोरोना काल खण्ड के दौरान इंटर्न/ रेजिडेंट्स डॉक्टर्स की कोविड अस्पतालों में ड्यूटी देश के कई राज्यों में लगाई गई है। क्या आधे अधूरे सासाधनों, एक अनपढ़ मजदूर से भी कम मानदेय देकर के किसी मोर्चे को फतह किया का सका है? लम्बे संघर्ष के बाद राजस्थान सरकार ने मेडिकल इंटर्न का मानदेय 14,000 रुपए कर दिया है लेकिन यह देर से उठाया क़दम है।
आशा है कि कोरोना महामारी से सबक लेते हुए देश की स्वास्थ्य नीति में आमूल चूल परिवर्तन होगा। देश के डिफेंस सेक्टर के समान स्वास्थ्य का बजट (एक प्रतिशत GDP से बढ़कर तीन प्रतिशत) भी बढ़ेगा, स्वास्थ्य सैनिकों (चिकित्सकों) को उचित मानदेय मिलेगा एवम् उनको अस्पताल में काम करते हुए अनुकूल परिणाम नहीं मिलने पर रोगियों के परिजनों द्वारा किए गए अपमान/ मारपीट आदि की घटनाओं को कानून एवं सुरक्षा कवच द्वारा बचाया जा सकेगा, जिससे उनका मनोबल कम न हो सके। उनको साजो समान (पीपीई किट, ग्लव्स, मास्क आदि) उपलब्ध कराए जा सकेगें, जिससे कोविड 19 नामक इस अदृश्य विषाणु से जारी युद्ध में वे पूरे मन से अपनी सक्रिय भागीदारी निभा सकें।
डॉ सुरेश पाण्डेय
नेत्र सर्जन, सुवि नेत्र चिकित्सालय एवम् लेसिक लेज़र सेंटर, कोटा, राजस्थान
लेखक: सीक्रेट्स ऑफ सक्सेसफुल डॉक्टर्स एवम् ए हिप्पोक्रेटिक ओडिसी: लेसन्स फ्रॉम ए डॉक्टर कपल ऑन लाइफ इन मेडिसिन, चैलेंजेज एंड डॉक्टरप्रेन्यूरशिप।