नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा से जुड़े आपराधिक मामलों की सुनवाई में तेजी लाने के लिए नई गाइडलाइन तय की हैं। शुक्रवार को कोर्ट ने ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए 6 महीने की समय सीमा निर्धारित की है। यानी जिस दिन हाईकोर्ट मौत की सजा के मामले में फैसला सुनाएगा, उस दिन से अगले 6 महीने के अंदर सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच उस मामले की सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया मामले में दोषियों की फांसी में हो रही देरी को देखते हुए यह गाइडलाइन तय की हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले में सर्कुलर जारी किया। इसमें कहा गया- हाईकोर्ट ने जिस भी दिन आपराधिक मामले में दोषियों को मौत की सजा सुनाई और उनके लिए दूसरी कोर्ट में अपील दायर करने का रास्ता खोला, उस दिन से लेकर अगले 6 महीने में ही सुप्रीम कोर्ट मामले की सुनवाई कर लेगी, चाहे उस मामले में दोषियों ने अपील दायर की हो या नहीं।
सभी दस्तावेज सुप्रीम कोर्ट को सौंपने होंगे
सर्कुलर में आगे कहा गया, “जैसे ही सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटीशन (एसएलपी) दाखिल की जाएगी, वैसे ही रजिस्ट्री मौत की सजा सुनाने वाली कोर्ट को 60 दिन (या जो भी समय अदालत तय करे) के अंदर सभी दस्तावेज भेजने का आदेश दे देगी। इससे जुड़े कोई अतिरिक्त दस्तावेज या जरूरत होने पर स्थानीय भाषाओं के दस्तावजों का ट्रांसलेशन भी रजिस्ट्री को देना होगा। अगर रजिस्ट्री को अन्य दस्तावेजों की जरूरत हुई, तो वह पक्षकारों को 30 दिन का अतिरिक्त समय देगी। अगर इसके बावजूद कुछ दस्तावेज नहीं मिलते हैं, तो मामले को जज के चैंबर में सूचीबद्ध किया जाएगा।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से गाइडलाइन तय करने की अपील की
निर्भया केस में दोषियों की फांसी में देरी से देश में उपजी नाराजगी के बीच 22 जनवरी को केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी। गृह मंत्रालय ने शीर्ष अदालत में दायर याचिका में कहा- मौत की सजा पर क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल करने के लिए समय सीमा तय की जाए। डेथ वॉरंट मिलने के बाद 7 दिन में ही दया याचिका लगाने का नियम रहे। दया याचिका खारिज होने के बाद 7 दिन में डेथ वॉरंट और अगले 7 दिन में फांसी हो, भले ही बाकी दोषियों की कोई भी याचिका लंबित हो। मौजूदा गाइडलाइंस के मुताबिक, किसी भी दोषी की कोई भी याचिका लंबित होने पर उस केस से जुड़े बाकी दोषियों को भी फांसी नहीं दी जा सकती।