कोटा। महावीर नगर विस्तार योजना स्थित दिगंबर जैन मंदिर में चल रहे आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी संघ के पावन वर्षायोग के अवसर पर माताजी ने प्रवचन करते हुए कहा कि मंदिर में प्रतिदिन पूजा अर्चना करने वाले लोग यह समझते हैं कि उनके पुण्य का उदय हो गया है। प्रभु से यह कोई नहीं मांगता कि प्रभु तेरे अंदर जो गुण है, वह मेरे अंदर आ जायें। आत्मा की शुद्धि के लिए कार्य करें।
उन्होंने कहा कि जिस घर में संतों का आदर नहीं होता वह घर श्मशान के समान है। संसार में सुख प्रत्येक व्यक्ति चाहता है, लेकिन दुख कोई नहीं चाहता। साधु की आप सुरक्षा करते हैं तो साधु भी आपको पाप-कर्म से बचाता हैं। भगवान बोलते नहीं हैं, वह जानते हैं यदि वह बोलेंगे तो श्रावक उनकी बात मानने वाला नहीं हैं। आंख, कान, हाथ-पैर यह शरीर के प्रमुख अंग हैं, लेकिन इनसे हम क्या काम ले रहे हैं?
मरने के बाद इस शरीर को कोई छूता भी नहीं हैं और जो छू लेता है, उसे स्नान करना पड़ता है। आत्मा की शुद्धि और कल्याण के लिए हमें कार्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक अच्छा और सच्चा मित्र हीरे के समान होता है। जो जीवन को सजा- संवार देता है। गलत मित्र कोयले के समान होता है। जलता कोयला उठाने पर हाथ जलेगा तो बुझा हुआ उठाने पर हाथ में कालिख लगा जाएगा।
उन्होंने कहा कि जीवन में मित्र का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। हर बात माता-पिता या बच्चों से नहीं कह सकते लेकिन, मित्र से हर प्रकार की बात कही जा सकती है। माताजी ने कहा कि आज के युग में अच्छे दोस्त बड़े नसीब से मिलते हैं।