धर्म को जीवित रखने और पुण्य कमाने का समय है चातुर्मास: आर्यिका सौम्यनन्दिनी

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कोटा। महावीर नगर विस्तार योजना स्थित दिगंबर जैन मंदिर में चल रहे आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी संघ के पावन वर्षायोग के अवसर पर रविवार को माताजी ने प्रवचन करते हुए कहा कि जैनियों की पहचान दिगंबर संतों से हीे है। यदि संत नहीं हों तो जैनत्व भी नहीं। संतों से ही जैन जिंदा हैं।

जैन दर्शन में यह कहा गया है कि व्यक्ति जिस नीयत से जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है। जैसे कुएं में जितनी ताकत से आवाज लगाई जाती है वह उतनी ही ताकत से वापस आती है। संतों का वर्षायोग (चातुर्मास) चतुर बनने, चारों कषायों का शमन करने, धर्म को जीवित रखने और पुण्य कमाने का समय है।

संगोष्ठी में आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी ने दस कारणों को समझाते हुए कहा कि अनादि काल से जीव और कर्म का संबंध है। इसी कारण व्यक्ति संसार में भ्रमण कर रहा है और आगे भी करता रहेगा। कर्म की अनेक अवस्थाओं को करण कहते हैं। वंध, उत्कर्षण, अपर्कषण, संक्रमण, उदीरणा, उदय, सत्व, उपशम, निधा, निकाचित ये दस करण है।

इन्हीं दस करण में व्यक्ति लिप्त होकर अपने कर्म को बांधता रहता है। प्रत्येक व्यक्ति को कर्मकांड जैसे महाग्रंथ को पढ़कर प्रत्येक कर्म की अवस्थाओं का अध्ययन अवश्य करना चाहिए। जिससे कि हम अपने कर्मों की निर्जरा कर सकें और आगे बंध रहे कर्म को भी रोक सकें। इस दौरान आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी के सान्निध्य में अभिषेक, पूजा, प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया।