कोटा। दिगंबर जैन मन्दिर महावीर नगर विस्तार योजना में चातुर्मास कर रही आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी ने बुधवार को प्रवचन करते हुए कहा कि योग साधना के आठ अंग हैं, जिनमें प्राणायाम चौथा सोपान है। प्राणायाम हमारे शरीर को ठीक रखने के लिए बहुत आवश्यक है। प्राणायाम के बाद प्रत्याहार, ध्यान, धारणा तथा समाधि मानसिक साधन हैं। प्राणायाम दोनों प्रकार की साधनाओं के बीच का साधन है।
प्राणायाम से शरीर और मन दोनों स्वस्थ एवं पवित्र हो जाते हैं तथा मन का निग्रह होता है। श्वास-प्रश्वास में स्थिरता और संतुलन से शरीर और मन में भी स्थिरता और संतुलन बढ़ता है। इससे रोग-प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। साथ ही, मन के स्थिर रहने से इसका नकारात्मक असर शरीर और मस्तिष्क पर नहीं पड़ता है।
आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी ने कहा कि काम, क्रोध, मद, लोभ, व्यसन, चिंता, व्यग्रता, नकारात्मता और भावुकता से मन-मस्तिष्क रोग से ग्रस्त हो जाता है। यह रोगग्रस्त मन हमारे शरीर का क्षरण करता रहता है। इस पर नियंत्रण करने के लिए ही ध्यान करते हैं। योग आत्मशक्ति को जागृत करता है। आसन, प्राणायाम और नियमित दिनचर्या से गंभीर रोगों को भी दूर किया जा सकता है।
योग को सही तरीके से किया जाए तो इसके उत्तम परिणाम दिखाई देते हैं। आसन और प्राणायाम शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक सिद्ध हुए हैं। लेकिन मन को शांति प्रदान करने के लिए आवश्यक है कि हम योग के प्राथमिक चरणों को पूरा करें। इससे पहले राजनन्दिनी चेलवत ने मंगलाचरण किया। वहीं राकेश खटोड़, मधु जैन, हितेश खटोड़ ने चित्र अनावरण, दीप प्रज्ज्वलन, शास्त्र भेंट किया गया।