कोटा। दिगंबर जैन मन्दिर महावीर नगर विस्तार योजना में चातुर्मास कर रही आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी ने अपने प्रवचन में कहा कि असुर कर्म के प्रभाव को धर्म ध्यान के माध्यम से नष्ट किया जा सकता है। धर्म ध्यान आत्मकल्याण का साधन है। जिसके मार्ग पर चलकर व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर सकता है। पुण्यों के प्रभाव से हमें मानव जीवन मिलता है और पुण्यों के द्वारा ही मुनि बन सकते हैं।
सौम्यनन्दिनी माताजी ने कहा कि सभी को अपनी भलाई के लिए साधुओं की सच्ची हित-शिक्षा को जीवन में आत्मसात् करने के लिए प्रयत्न करना चाहिए। घर जाने के बाद आचरण में लाने के लिए कुछ भी प्रयत्न न करो तो यह नुकसान साधु का नहीं, आपका स्वयं का है, क्योंकि सुधर्म की साधना नहीं करेंगे तो आप ही सच्चे सुख से वंचित रहेंगे।
मोक्ष के लिए ही धर्म का आचरण आवश्यक है। अतः अन्य कामनाओं का त्याग कर एक मात्र मोक्ष-साधक धर्म के आचरण में ही तत्पर बनना चाहिए। जो आत्माएं मोक्ष-साधक धर्म के आचरण में उद्यमशील बनती हैं, वे आत्माएं दुखरहित सम्पूर्ण शाश्वत मोक्ष सुख प्राप्त करती हैं। इससे पहले पलक दौराया ने मंगलाचरण किया। वहीं नरेन्द्र खटोड़, मुकेश खटोड़, प्रदीप खटोड़ की ओर से चित्र अनावरण, दीप प्रज्ज्वलन, शास्त्र भेंट किया गया।