इंदौर। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और मध्यप्रदेश की मंडियों में गेहूं की आपूर्ति घटने के बीच मांग बढ़ने के कारण तेजी का रुझान है। दक्षिण के राज्यों के साथ ही बिहार, बंगाल और उड़ीसा में गेहूं का स्टॉक घटा है, जबकि इसकी सरकारी खरीद बंद हो चुकी है। सरकार ने शुल्क बढ़ाकर गेहूं के आयात का रास्ता एक हद तक बंद कर दिया है।
बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत जुलाई-सितंबर तिमाही के लिए सरकारी गेहूं का न्यूनतम बिक्री मूल्य बढ़ाकर 2,135 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया गया है। अप्रैल-जून तिमाही के यह भाव 2,080 रुपए प्रति क्विंटल था। यानी नया भाव 55 रुपए ज्यादा है।
अक्टूबर-दिसंबर 2019 और जनवरी-मार्च 2020 के दौरान भी इस बिक्री मूल्य में 55 रुपए प्रति क्विंटल का इजाफा होगा। ये भाव मंडियों में 1,900 रुपए की औसत कीमत से काफी अधिक होने के कारण मंडियों में मांग का दबाव बढ़ता जा रहा है।बंगाल और उड़ीसा के साथ-साथ महाराष्ट्र एवं तमिलनाडु में भी गेहूं की मांग बढ़ती जा रही है। आटा-मैदा मिलें फिलहाल सरकारी गेहूं खरीदने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही हैं। इसके कारण खुले बाजार में मजबूती बनी हुई है ।
सरकारी खरीद में कमी
गेहूं की सरकारी खरीद में 16 लाख टन की कमी आई है और घरेलू उत्पादन 975 लाख टन से ज्यादा नहीं हुआ है। दक्षिण की मांग की बड़ी वजह सरकारी गेहूं की ऊंची कीमत है। इससे माल के दिसंबर तक बिकने के आसार कम हैं क्योंकि तब तक उत्तर घरेलू मंडियों में छुटपुट आवक बने रहने के आसार हैं।
उत्पादन सरकारी अनुमान से कम
सरकार की तरफ से जारी तीसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक देश में गेहूं का उत्पादन 1,012 लाख टन रह सकता है। आकड़ों के अनुसार 2017-18 में गेहूं का उत्पादन 998.7 और 2016-17 में 985.1 लाख टन हुआ था। वास्तव में गेहूं का उत्पादन इससे कम हुआ है।
सरकारी खरीद और मंडियों में हुई आवक को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि इस साल उत्पादन 950-975 लाख टन से ऊपर नहीं हो पाएगा । 2017-18 में गेहूं का सरकारी खरीद लक्ष्य 320 लाख टन रखा गया था, जबकि खरीद 358 लाख टन हुई थी। 2018-19 में इसके विपरीत उत्पादन बढ़ने के बावजूद सरकारी खरीद 341 लाख टन हो पाई यानी गत वर्ष से 16 लाख टन कम।
पंजाब में क्वालिटी कमजोर: पंजाब में फसल के दौरान बारिश की वजह से गेहूं की क्वालिटी कमजोर बताई जा रही है। सरकार को मजबूरन यह गेहूं खरीदना पड़ा है। एफसीआई की तरफ से यदि बारिश से प्रभावित गेहूं नहीं खरीदा जाता तो खरीद के आकड़े और कम हो सकते थे।