नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति यानी एमपीसी (मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी) ने गुरुवार को रिवर्स रेपो रेट में 0.25 पॉइंट की बढ़ोतरी करते हुए उसे 5.75 फीसदी से बढ़ाकर 6 फीसदी कर दिया है। वहीं रेपो रेट को 6.25 पर यथावत रखा गया है।
पॉलिसी का प्रभाव
- नोटबंदी के बाद बैंकों में सरप्लस मात्रा में कैश पहुंचा है। जिसका प्रभाव बैंकिंग सिस्टम पर पड़ा है।
- मॉनेटरी पॉलिसी में बदलाव न होने का फायदा देश के रियल एस्टेट सेक्टर को मिलेगा।
- पॉलिसी का असर शेयर बाजार पर भी दिखा। निफ्टी तथा एनएसई में लिस्टेट बैंकों के शेयर के दामों में बढ़ोतरी देखी गई।
मॉनेटरी पॉलिसी की घोषणा के बाद आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरबीआई की तरफ से बताया गया कि अर्थव्यवस्था के आधार पर अगले कदम तय किए जाएंगे। साथ ही यह भी बताया कि फरवरी के बाद से बैंकों में आई नकदी को काफी हद तक नियंत्रित कर लिया गया है।आरबीआई का मानना है कि अगली 3 से 4 तिमाही में नकदी को पूरी तरह से कंट्रोल कर लिया जाएगा। केंद्रीय बैंक को अंदेशा है कि अप्रैल से सितंबर 2017 के बीच सरकारी खर्च बढ़ सकता है।वहीं कर्ज माफी से नाखुश होते हुए कहा कि इससे ईमानदार करदाता हतोत्साहित होते हैं और नैतिक खतरा भी बढ़ता है। इसलिए कर्ज माफी को रोकना चाहिए।केंद्रीय बैंक को आशंका है कि कमजोर मानसून और जीएसटी से बाजार पर जो प्रभाव पड़ेगा उससे महंगाई बढ़ सकती है।आरबीआई जल्द ही फाइनेंशियल लिट्रेसी प्रोजेक्ट भी शुरू करने जा रहा है।कुल मिलाकर आज की मॉनेटरी पॉलिसी को बाजार में सकारात्मक लिया है और उम्मीद जताई जा रही है कि इसका अच्छा प्रभाव देखने को मिलेगा।वैसे, जानकारों ने बुधवार को ही अंदेशा जताया था कि महंगाई बढ़ने के कारण चालू वित्त वर्ष 2017-18 की पहली दोमाही समीक्षा में केंद्रीय बैंक नीतिगत दर (रेपो रेट) को यथावत रखेगा। गौरतलब है कि आठ फरवरी की मौद्रिक नीति की समीक्षा में भी आरबीआई ने दरों में कोई बदलाव नहीं किया था। फिलहाल रेपो रेट (वह दर जिस पर बैंक आरबीआई से कम अवधि के कर्ज लेते हैं) 6.25 फीसद है।विशेषज्ञों के मुताबिक अमेरिका में बढ़ती ब्याज दरों से तो कम से कम यह संकेत मिल ही गया था कि दरों में कटौती नहीं होगी। इसके उलट घरेलू और विदेशी कारकों के असर से भविष्य में ब्याज दरें बढ़ाई जा सकती हैं।
महंगाई में बढ़ोतरी का रुझान
फरवरी में थोक मूल्यों वाली महंगाई दर 39 महीनों के ऊंचे स्तर 6.55 फीसद पर पहुंच गई। खुदरा महंगाई की दर भी थोड़ी सी बढ़कर 3.65 फीसद हो गई है। केंद्रीय बैंक महंगाई को ही पैमाना बनाकर दरों में बदलाव करता है। जनवरी, 2015 से अब तक रिजर्व बैंक ने दरों में 1.75 फीसद की कटौती की है।
MPC में शामिल सदस्य
आरबीआई की ओर से गवर्नर उर्जित पटेल, डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य और एक एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर। सरकार की तरफ से प्रोफेसर चेतन घाटे, पामी दुआ और प्रोफेसर रविंद्र एच ढोलकिया।
क्या होती है रेपो रेट
रेपो रेट वह दर होती है जिसपर बैंकों को आरबीआई कर्ज देता है। बैंक इस कर्ज से ग्राहकों को लोन मुहैया कराते हैं। रेपो रेट कम होने का अर्थ है कि बैंक से मिलने वाले तमाम तरह के कर्ज सस्ते हो जाएंगे। मसलन, गृह ऋण, वाहन ऋण आदि।रिवर्स रेपो रेटयह वह दर होती है जिसपर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है।
रिवर्स रेपो रेट
बाजारों में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में काम आती है।
MSF क्या है
आरबीआई ने पहली बार वित्त वर्ष 2011-12 में सालाना मॉनेटरी पॉलिसी रिव्यू में एमएसएफ का जिक्र किया था। यह कॉन्सेप्ट 9 मई 2011 को लागू हुआ। इसमें सभी शेड्यूल कमर्शियल बैंक एक रात के लिए अपने कुल जमा का 1 फीसदी तक लोन ले सकते हैं। बैंकों को यह सुविधा शनिवार को छोड़कर सभी वर्किंग डे में मिलती है।नकद आरक्षित अनुपात (CRR)देश में लागू बैंकिंग नियमों के तहत प्रत्येक बैंक को अपनी कुल नकदी का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना ही होता है। इसे ही कैश रिजर्व रेश्यो (सीआरआर) या नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) कहा जाता है।
क्या होता है SLR
जिस दर पर बैंक अपना पैसा सरकार के पास रखते है, उसे एसएलआर कहते हैं। नकदी की तरलता को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। कमर्शियल बैंकों को एक खास रकम जमा करानी होती है जिसका इस्तेमाल किसी आपात देनदारी को पूरा करने में किया जाता है।आरबीआई जब ब्याज दरों में बदलाव किए बगैर नकदी की तरलता कम करना चाहता है तो वह सीआरआर बढ़ा देता है, इससे बैंकों के पास लोन देने के लिए कम रकम ही बचती है।