नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने नोटबंदी के बाद इस साल राजधानी में इनकम टैक्स अथॉरिटीज के छापों और कुर्की-जब्ती को वैध करार दिया है। जस्टिस एस. मुरलीधर और जस्टिस चंदर शेखर की पीठ ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति के यहां छापेमारी के दौरान पता चले कि किसी बैंक अकाउंट में अघोषित धन जमा है, लेकिन वह बैंक अकाउंट उसके नाम पर नहीं है तो विभाग उस धन को जब्त कर सकता है।
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने दिल्ली के एक बिजनसमेन के ठिकानों पर छापेमारी की और जानकारी मिलने के बाद उसकी आठ कंपनियों और एक सहयोगी के अलग-अलग बैंक अकाउंट्स में जमा अघोषित रकम को जब्त कर लिया था। हाई कोर्ट की बेंच ने कहा कि बैंक अकाउंट में पड़ा पैसा ‘निःसंदेह एक मूल्यवान वस्तु’ है।
उसने इनकम टैक्स ऐक्ट का हवाला देते हुए कहा कि ‘किसी बैंक अकाउंट में रखी गई रकम सेक्शन 132(1) के दायरे से बाहर नहीं है और इसकी तलाश और कुर्की हो सकती है’ क्योंकि ‘कोई व्यक्ति न केवल अपने बैंक अकाउंट में बल्कि किसी दूसरे के अकाउंट में भी अघोषित आय छिपा सकता है।’
नोटबंदी के बाद काला धन तलाशी अभियान में तेजी लाते हुए इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने जनवरी में मोहनीश मोहन मुक्कर के ठिकानों पर छापेमारी की थी। उन पर कई कागजी कंपनियां खोलने का आरोप था। डिपार्टमेंट ने हाई कोर्ट से कहा कि इन कंपनियों में ज्यादातर का कोई जमीनी संचालन नहीं हो रहा था।
ये सिर्फ एक-दूसरे को पैसे का लेनदेन करती थीं ताकि आय का असली स्रोत छिपाकर टैक्स चोरी की जा सके। बैंक रिकॉर्ड्स की पड़ताल करने और पैसों की आवाजाही की विस्तृत जानकारी लेने के बाद इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने कुछ कंपनियों और एक महिला कर्मचारी के आठ बैंक खातों में 24 करोड़ रुपये ढूंढ निकाले।
आरोपियों ने इस कुर्की के खिलाफ हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और विभाग की कार्रवाई को चुनौती दी। वरिष्ठ वकील पी. चिदंबरम ने उन आठ कंपनियों का बचाव किया जिनके बैंक खातों को फ्रीज कर दिया गया। लेकिन, हाई कोर्ट ने उसे भ्रमित करने की कोशिश के आरोप में उल्टा उन आठों कंपनियों और उस महिला याचिकाकर्ता पर ही एक-एक लाख का जुर्माना लगा दिया।
साथ ही, बेंच ने तलाशी के बाद पूछताछ के दौरान विभाग के सामने फर्जी दस्तावेज पेश करने की बात छिपाने के मकसद से कोर्ट को झूठा शपथ पत्र देने के लिए उन पर मुकदमा चलाने का आदेश दिया।