नई दिल्ली । अर्थव्यवस्था में संभावित नकदी संकट की संभावना के बीच भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बैंकों को बड़ी राहत देते हुए अनिवार्य नकदी सीमा के मामले में छूट दी है। आरबीआई के इस फैसले से बैंकिंग व्यवस्था में पर्याप्त मात्रा में नकदी को बनाए रखने में मदद मिलेगी।
देश की बड़ी इंफ्रा फाइनेंसिंग कंपनियों में से एक के डिफॉल्ट होने के बाद सरकार ने निवेशकों की चिंता को दूर करने की कोशिश की है। हालांकि इसके बावजूद नकदी संकट की संभावित स्थिति को लेकर निवेशकों के मन में शंकाएं है, जिससे घरेलू बाजार, बॉन्ड और रुपये की सेहत पर असर हो रहा है।
नकदी सीमा के प्रावधानों को नरम किए जाने के अलावा सरकार ने बुधवार देर शाम गैर-जरूरी सामानों पर लगने वाले कस्टम ड्यूटी (सीमा शुल्क) में इजाफा कर बॉन्ड और करेंसी मार्केट के सेंटीमेंट को सहारा देने की कोशिश की है।
सरकार का यह फैसला देश के बढ़ते चालू खाता घाटा को कम करने का है ताकि रुपये पर पड़ रहे दबाव को म किया जा सके। इस साल अभी तक डॉलर के मुकाबले रुपया करीब 12 फीसद तक टूट चुका है।
बैंकों को अभी उनके कुल डिपॉजिट का करीब 19.5 फीसद हिस्सा सरकारी बॉन्ड में लगाना होता है, जो उनके एसएलआर का हिस्सा होता है। आरबीआई की तरफ से नियमों में छूट दिए जाने के बाद बैंक अब पहले के 13 फीसदी के मुकाबले 15 फीसद नकदी का इस्तेमाल कर पाएंगे।
आरबीआई का यह फैसला एक अकटूबर से लागू होगा। आरबीआई ने कहा, ‘यह फैसला वित्तीय सिस्टम में नकदी की स्थिति बहाल करने में मदद करेगा।’
क्यों गहरा रही नकदी संकट की आशंका
इंफ्रास्ट्रकचर डेवलपमेंट और फाइनेंस कंपनी आईएलएंडएफएस समूह पर 31 मार्च, 2018 तक कुल 91,000 करोड़ रुपये का कर्ज था और कंपनी इस हालत में नहीं थी कि वह उसका भुगतान कर सके, ऐसे में कंपनी भुगतान से चूक करने लगी। इस डिफॉल्ट के बाद करेंसी मार्केट में कई तरह की आशंकाएं पनप रही है।
इस कंपनी में सरकार की 40 फीसद हिस्सेदारी है। आईएसएंडएफएस में एलआईसी की 25.34 फीसद, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की 7.67 फीसद और भारतीय स्टेट बैंक की 6.42 फीसद हिस्सेदारी है। इसके अलावा इसमें जापान की ओरिक्स कॉर्प की 23.5 फीसदी और अबुधाबी की निवेश विभाग की 12.5 फीसदी हिस्सेदारी है।