कोटा। सिटी का परमिट लेकर 220 बसें सड़कों से लापता हो गई हैं। इधर, लोग पर्याप्त सिटी बसें न होने से लोग ऑटो-टैम्पो में धक्के खा रहे हैं। सिर्फ नगर निगम की 34 सिटी बसें ही इस समय शहर में चल रही।
शहर में नागरिक परिवहन सुविधा को विस्तार देने के लिए परिवहन विभाग ने 254 बसों को सिटी बस का परमिट जारी किया था। परिवहन विभाग ने नगरीय परिवहन सुविधा के लिहाज से पूरे शहर को 17 रूटों में बांटा है। इन रूटों पर 14 से लेकर 52 सीटर बसों को 2018 से 2022 तक का पांच साल का परमिट जारी किया।
70 फीसदी रूट की शुरुआत रेलवे स्टेशन से होती है, लेकिन इन बसों के नहीं चलने से सवारियों को महंगा किराया चुकाकर ऑटो बुक करने पड़ते हैं या टैम्पो में धक्के खाने पड़ते हैं। परिवहन विभाग ने भी परमिट देने से आगे कुछ नहीं किया। न तो कभी सिटी बसों के स्टॉपेज सार्वजनिक किए और ना ही कहीं बसों के आने-जाने का समय लिखवाया।
यह है कमाई का खेल
टैक्स और सरचार्ज चुकाने के बाद सिटी बस का परमिट करीब 2500 रुपए महीने में मिल जाता है, लेकिन वाणिज्यिक संस्थानों और निजी बुकिंग के परमिट के लिए 12,500 रुपए से ज्यादा का कर चुकाना पड़ता है। टैक्स बचाने के लिए बस मालिक सस्ता परमिट लेकर बसों को वाणिज्यिक संस्थानों में लगा देते हैं।
ताक पर कानून
परिवहन कानूनों के मुताबिक स्कूलों में बस चलाने के लिए पंजीकरण वाल वाहिनी में कराकर बच्चों की सुरक्षा के उपाय करने होते हैं। कोचिंग वाणिज्यिक संस्थानों की श्रेणी में आते हैं, इसलिए उन्हें कांट्रेक्ट कैरेज से कवर्ड यात्री वाहन का परमिट लेना होता है।
शहर के कई कोचिंग संस्थानों ने पहले से ही इस श्रेणी में बसों का परमिट लिया हुआ है। ऐसे में परिवहन विभाग की मिलीभगत से सिटी बसों के मालिक टैक्स का चूना लगा रहे हैं।
मालिक स्कूलों में लगा देते हैं
कोटा आरटीओ धर्मेंद्र चौधरी का कहना है कि बस मालिक सिटी परमिट वाली बसों को तय रूट पर चलाने की बजाय स्कूल और कोचिंगों में लगा देते हैं। परमिट के बाद बसें रूट पर चल रही या नहीं, यह जानने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई।