नई दिल्ली। पीएनबी धोखाधड़ी के बाद सबके मन में यह सवाल घूम रहा है कि कहीं बैंक में जमा उनकी रकम हमेशा के लिए डूब तो नहीं जाएगी। पिछले दिनों अफवाह उड़ी थी कि ऐसा नियम बनने जा रहा है जिससे बैंकों में जमा आम आदमी के रकम की गारंटी सरकार की नहीं होगी।
जाहिर है, लोग काफी डर गए थे, लेकिन सरकार के खंडन के बाद लोग थोड़ा निश्चिंत हुए हैं। अब पीएनबी धोखाधड़ी के बाद लोगों को एक बार फिर डर सता रहा है कि धोखाधड़ी की वजह से अगर बैंक डूब जाए तो खून-पसीने के कमाए उसके पैसे की गारंटी कौन लेगा।
एक लाख तक की चिंता नहीं
बैंकिंग मामलों के जानकार मनीष शाह कहते है,’बैंक में जमा 1 लाख रुपये तक की रकम इंश्योर्ड है। इसके अलावा जो पैसा है, वह किसी भी लॉ के तहत गारंटीड नहीं है।
वैसे, आमतौर पर बैंकों में जमा लोगों का पैसा पूरी तरह सुरक्षित माना जाता है, क्योंकि कोई भी सरकार और रिजर्व बैंक किसी भी बैंक को फेल होने नहीं देती। आमतौर पर मजबूत बैंक भी कमजोर बैंक को सहारा दे देता है।’
मार्केट के जानकार एस. पी. तुलसियान कहते हैं,’भले ही कोई बैंक कितना भी छोटा क्यों न हो, उसमें जमा आपके पैसे की सुरक्षा करने के लिए सरकार होती है। कोई भी सरकार किसी बैंक को फेल नहीं होने देती क्योंकि बैंक के फेल होने की राजनीतिक कीमत बहुत ज्यादा है।’
नए बिल का फेर
वर्तमान में डिपॉजिटर्स इंश्योरेंस स्कीम, जिसके अंतर्गत 1 लाख रुपये तक आपका पैसा बैंक में सुरक्षित है, उसके तहत सभी बैंक, कमर्शल, रीजनल, रूरल को-ऑपरेटिव बैंक आते हैं।
प्रस्तावित एफआरडीआई बिल सुझाता है कि बेल-इन-प्रविजन में बहुत जरूरत होने पर बैंक अपनी लायबिलिटी का कैंसलेशन करता है तो इस हद में बैंक डिपॉजिटर्स का पैसा भी आ सकता है। लेकिन इस पर विवाद के कारण इसको अभी रिव्यू के लिए भेज दिया गया है।
नया बिल आता है तो यह कितना सुरक्षित होगा?
वर्तमान बिल की जगह अगर यह नया बिल आकर लेता है तो यह कितना सुरक्षित होगा? इसके जवाब में फिनसेक लॉ अडवाईजर्स के मैनेजिंग पार्टनर कहते हैं, ‘वर्तमान इंश्योरेंस स्कीम नए बिल में समाहित होगी और 1 लाख रुपए का डिपॉजिट इंश्योरेंस डिपॉजिट जारी रहेगा।
जहां तक बाकी डिपाजिट का सवाल है तो वह भी सुरक्षित माना जाना चाहिए क्योंकि किसी भी कमर्शल बैंक को पिछले 70 साल में बर्बाद नहीं होने दिया गया है। यही सॉवरिन गारंटी नए बिल की आत्मा में भी है।
आखिर नए प्रपोज्ड बिल में ऐसा किया गया है जिसे लेकर इतनी चिंता है। सूत्रों के अनुसार जैसे ही कोई फाइनैंशल सर्विस कंपनी, जिसमें बैंक भी हैं, क्रिटिकल कैटिगरी में आएगी, उसका प्लान तैयार किया जाएगा। इसके तहत बैंक की लायबिलिटी को कैंसल करने जैसे स्टेप्स भी शामिल हैं।
इस बेल-इन-क्लॉज में डिपॉजिटर्स का पैसा भी जद में आ सकता है। वैसे कस्टमर्स का पैसा 5वें नंबर की लायबलिटी है और ऐसा होना संभव नहीं लेकिन लोगों की चिंता को देखकर इसको ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।