राज्यों के टैक्स कलेक्शन में गिरावट जारी

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नई दिल्ली। जीएसटी लागू होने के बाद राज्यों के राजस्व संग्रह में कमी का सिलसिला थम नहीं रहा है। हाल यह है कि राज्यों के राजस्व में कमी का आंकड़ा क्षतिपूर्ति सेस के रूप में सरकार को प्राप्त हो रही धनराशि से भी अधिक है। अगर सेस के संग्रह में वृद्धि नहीं हुई तो केंद्र सरकार को राज्यों को होने वाली राजस्व क्षति की भरपाई अपने खजाने से करनी पड़ेगी।

केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता में जीएसटी काउंसिल की 25वीं बैठक में चालू वित्त वर्ष में अब तक जीएसटी के संग्रह के ट्रेंड का जायजा भी लिया गया जिसमें चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। सूत्रों के मुताबिक अगस्त से दिसंबर के दौरान क्षतिपूर्ति सेस से हर महीने औसतन 7615 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं जबकि इस दौरान राज्यों के राजस्व संग्रह में जो कमी रही है, उसका आंकड़ा काफी अधिक है।

मसलन, दिसंबर में ही सभी राज्यों को 8,894 करोड़ रुपये राजस्व हानि हुई जबकि इस महीने में क्षतिपूर्ति सेस से मात्र 7848 करोड़ रुपये ही राजस्व प्राप्त हुआ। यह आंकड़ा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि जीएसटी कानून के तहत जीएसटी लागू होने के चलते राज्यों को जितनी राजस्व हानि होगी, केंद्र सरकार उसकी भरपाई क्षतिपूर्ति सेस से करेगी।

जीएसटी कानून के तहत प्रत्येक राज्य के लिए अपेक्षित राजस्व संग्रह का एक आंकड़ा फिक्स किया गया है और अगर वहां जीएसटी संग्रह इस आंकड़े से कम रहता है तो उसकी भरपाई का दायित्व केंद्र का होता है। सूत्रों ने कहा कि ऐसे में अगर क्षतिपूर्ति सेस से राशि कम आती है तो फिर केंद्र सरकार को अपने खजाने से राज्यों को क्षतिपूर्ति करनी होगी।

असल में एक जुलाई 2017 से जीएसटी लागू होने के बाद शुरुआती महीनों में राज्यों को जीएसटी से प्राप्त होने वाले राजस्व में कमी का आंकड़ा अक्टूबर तक नीचे आया लेकिन नवंबर में जीएसटी काउंसिल ने 200 से अधिक वस्तुओं और कई सेवाओं पर जीएसटी की दरें घटाने का फैसला किया जिसके बाद राज्यों के राजस्व संग्रह में कमी का यह आंकड़ा फिर बढ़ने लगा।

विलंब शुल्क में कमी
जीएसटी काउंसिल ने एक अन्य निर्णय में जीएसटीआर-1 रिटर्न दाखिल करने पर लगने वाला विलंब शुल्क घटाकर 50 रुपये प्रति दिन कर दिया है। हालांकि अगर किसी कारोबारी का टर्नओवर शून्य है तो उस पर यह फीस 25 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से लगेगी।