अपमान नहीं, सद्भाव से ही जीव मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर होता है: विभाश्री माताजी

0
11

कोटा। रिद्धि–सिद्धि नगर में विराजमान गणिनी आर्यिका विभा श्री माताजी ने शुक्रवार को भक्तामर स्तोत्र की कक्षा में आध्यात्मिक दृष्टि से गहन संदेश देते हुए कहा कि किसी भी पापी जीव का अपमान नहीं करना चाहिए। क्योंकि वही जीव पाप का परित्याग कर पुण्यात्मा बनने की क्षमता रखता है।

माताजी ने स्पष्ट किया कि अपमान से परिवर्तन संभव नहीं, बल्कि सद्भाव और मार्गदर्शन से ही जीव मोक्षपथ की ओर अग्रसर होता है। भक्तामर स्तोत्र के 11वें काव्य का उल्लेख करते हुए उन्होंने आचार्य मानतुंग स्वामी द्वारा भगवान आदिनाथ की अर्पित स्तुति का भावार्थ समझाया।

उन्होंने कहा कि मानतुंग स्वामी लिखते हैं— हे जिनेन्द्रदेव! आप इतने लावण्यपूर्ण हैं कि आपके निरंतर दर्शन नेत्रों को अद्वितीय शांति प्रदान करते हैं। जो पुरुष आपको एक क्षण भी पूर्णता से देख ले, उसके नेत्रों में आपका दिव्य रूप इस प्रकार बस जाता है कि फिर कोई अन्य देव उसे संतोष नहीं दे सकता।

उदाहरण देते हुए माताजी ने कहा कि जैसे चंद्रमा की शुभ, शीतल किरणों का आनंद लेने के बाद कोई व्यक्ति खारे समुद्र का जल नहीं पीना चाहेगा, उसी प्रकार ईश्वर के दिव्य दर्शन के बाद संसारिक आकर्षण फीके पड़ जाते हैं।

उन्होंने कहा कि भगवान आदिनाथ की सुंदरता अद्वितीय है, क्योंकि यह सौंदर्य असंख्य पवित्र परमाणुओं से निर्मित है। माताजी ने प्रवचन के अंत में कहा कि साधना का लक्ष्य बाहरी नहीं, बल्कि आत्मिक सौंदर्य को निखारना है, जो जीवन को पूर्णता की ओर ले जाता है।