रिद्धि-सिद्धि नगर में 151 मण्डनीय श्री सिद्धचक्र महामण्डल विधान का आठवां दिवस
कोटा। रिद्धि-सिद्धि नगर स्थित जिनालय प्रांगण में चल रहे 151 मण्डनीय श्री सिद्धचक्र महामण्डल विधान के आठवें दिन आर्यिका विनय माताजी ने अपने प्रेरक प्रवचन में वाणी और पानी का संयम विषय पर सारगर्भित विचार रखे।
माताजी ने कहा कि मनुष्य का मन क्षण-प्रतिक्षण नई-नई इच्छाओं की ओर दौड़ता रहता है। पहले साइकिल होती है तो मोटरसाइकिल की चाह उठती है, फिर कार, और उसके बाद महंगी कार की। इच्छाओं का यह क्रम अंतहीन है।
यदि हम वास्तव में सुखी रहना चाहते हैं तो अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं को सीमित करना आवश्यक है। मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा ने बताया कि मंगलवार को पादपक्षालन का सौभाग्य गुरूसेवा संघ को प्राप्त हुआ। मंत्री पंकज खटोड ने बताया कि मंगलवार को 1024 अर्घ समर्पित किए गए।
माताजी ने बताया कि हमारी रसना इन्द्रिय (जीभ) के दो कार्य हैं, स्वाद लेना और वाणी प्रकट करना। इसलिए आवश्यक है कि हमारी वाणी वीणा का कार्य करे, बाण का नहीं। शब्दों के माध्यम से किसी का मन दुखाना अधर्म है। वाणी को संयमित रखना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि आज तक जितने भी युद्ध हुए हैं, वे वाणी के दुरुपयोग से ही हुए हैं। हमें हित, मित और प्रिय वचन बोलने चाहिए, कम बोलो, काम का बोलो।
उन्होंने कहा कि प्रकृति ने भी रसना इन्द्रिय को नियंत्रित रखने की व्यवस्था की है। पहले दांतों के भीतर और फिर ओंठों के भीतर। दो पैर केवल चलने के लिए, दो हाथ केवल कार्य करने के लिए, दो कान केवल सुनने के लिए और दो आंखें केवल देखने के लिए दी गई हैं। यह प्रकृति का संयम सिखाने का संकेत है।
माताजी ने पानी के संरक्षण की ओर भी ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि भगवान महावीर स्वामी ने बताया है कि एक बूँद पानी में असंख्य जीव होते हैं। आधुनिक विज्ञान ने भी यह सिद्ध किया है कि एक बूँद पानी में 36,450 जीव पाए जाते हैं। इसलिए जल का दुरुपयोग न करें। यदि एक बाल्टी पानी में कार्य हो सकता है तो व्यर्थ बहाना अधर्म है।

